`मिलेट-वर्ष` को हर हाल में करना ही होगा सार्थक

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब दिल्ली में मिले तो मोदी ने बघेल से यही अनुरोध किया कि आप छत्तीसगढ़ में `मिलेट्स` (यानी मोटे अनाज) को प्रोत्साहित करें।

Created By : ashok on :06-01-2023 14:35:36 गिरीश पंकज खबर सुनें

गिरीश पंकज
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब दिल्ली में मिले तो मोदी ने बघेल से यही अनुरोध किया कि आप छत्तीसगढ़ में 'मिलेट्स' (यानी मोटे अनाज) को प्रोत्साहित करें। मुख्यमंत्री ने भी इस बात के लिए सहमति जाहिर की। प्रधानमंत्री ने यह सुझाव तब दिया, जब सन 2023 को 'मिलेट्स वर्ष' घोषित किया गया है। और अब लग रहा है कि भारत भर में धीरे-धीरे मिलेट-संस्कृति को प्रोत्साहन मिलेगा। और इस वर्ष से एक बेहतर सकारात्मक शुरुआत होगी। आधुनिकता की रौ में बहकर भारतीय समाज या कहें कि विश्व समाज मोटे अनाजों से दूर होता जा रहा है। उसे हर चीज रिफाइन पॉलिश वाली चाहिए। भले ही उसके सेवन से स्वास्थ्य पर विपरीत असर क्यों न पड़ जाए।

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बहुत समय पहले इस मिलेट शब्द से मेरा परिचय नहीं था। हालांकि बाजरा, ज्वार, रागी, कोदो, कुटकी आदि मोटे अनाज को मैं जानता था। हम सब जानते हैं, लेकिन इन्हें ही मिलेट्स कहा जाता है, बाद में पता चला। दुर्भाग्य की बात है कि इस तथाकथित नए दौर में हर मोटे अनाज के प्रति हमारे समाज में उदासीनता ही नजर आती है। आज चमक-दमक का जमाना है न। अनाज के जितने भी प्रकार हैं, यहां तक कि खाने के जो तेल आदि हैं, उनको भी पॉलिश करके बाजार में प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति पनप गई है। फिर चाहे वह गुड़ हो, नमक हो या सेब। ये सब देखने में आकर्षक होते हैं लेकिन इनकी गुणवत्ता बेहद न्यून होती है। इन सब चीजों का मीडिया के माध्यम से ऐसा प्रचार होता है कि लोग बरबस आकर्षित हो जाते हैं। मोटे अनाज की लोग उपेक्षा करते रहे हैं, जबकि हमारे बुजुर्ग सदियों से ही मोटा अनाज खाते रहे हैं। ये अनाज ज्यादा शुद्ध होते हैं। बहुत पहले आज जैसी तथाकथित आधुनिकता भी तो नहीं आई थी। लोग पौष्टिक चीजें ही खाते थे। घी भी शुद्ध हुआ करता था। अब तो अधिकाधिक कमाने की प्रवृत्ति के कारण चारों ओर मिलावट का बाजार गर्म है। यह अच्छी बात है कि अब हमारे प्रधानमंत्री ने भी मोटे अनाज की ओर देश का ध्यान आकृष्ट किया है।

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संयुक्त राष्ट्र को भारत ने ही प्रस्ताव दिया था कि 2023 को विश्व 'मिलेट्स वर्ष' के रूप में घोषित करें। भारत के इस प्रस्ताव को तमाम देशों ने समर्थन भी दिया और बाद में संयुक्त राष्ट्र ने घोषित किया कि 2023 को हम मिलेट वर्ष के रूप में मनाएंगे। यह तभी सार्थक होगा, जब हम सब मिलजुल कर मोटे अनाज को अपनी रसोई में जगह देंगे और इसे अपनी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा बनाएंगे। लगे हाथ मैं यही कहना चाहता हूँ कि भारत के बाद को अब पूरी दुनिया सुन रही है। भारत सरकार ने ही जब कुछ वर्ष पहले कहा कि 21 जून को योग दिवस मनाना चाहिए तो संयुक्त राष्ट्र ने उस पर अपनी मुहर लगाई और आज पूरी दुनिया में योग दिवस मनाया जाता है। इसी कड़ी में भारत के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र ने स्वीकार किया और यह पूरा वर्ष मिलेट वर्ष होगा। रायपुर के पास स्थित कसबे मंदिर हसौद में 'डिवाइन अर्थ' नामक एक ऐसा केंद्र विकसित हो रहा है जिसे लोग मिलेट कैफे के रूप में जानने लगे हैं।


पिछले दिनों वहां जाकर मैंने इस प्रयास को अपनी आंखों से देखा, तो संतोष हुआ कि इस दिशा में लोग जागरूक होकर काम करना चाहते हैं। यहां मिट्टी के बर्तन में खाना बनता है और तरह-तरह के व्यंजन बाजरा, ज्वार, रागी, कोदो, रामदाना, कुटकी आदि के ही बनाकर परोसे जाते हैं। साहीवाल, गीर और खारपारकर जैसे उन्नत नस्ल वाला गोवंश भी यहां हैं। उनके शुद्ध उत्पाद लोगों तक पहुंचाए जाते हैं। रायगढ़ में भी इसी तरह का प्रयास शुरू हुआ है।

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उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में सरकारी सहयोग से पूरे देश में मिलेट कैफे शुरू होंगे। इस का प्रचार- प्रसार होगा। इससे किसानों को भी फायदा होगा। मिलेट्स की विशेषता यह है कि ये कम पानी में जैविक तरीके से उगाए जा सकते हैं। जमीन उर्वरक होनी चाहिए। मिलेट्स स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। कह सकते हैं कि ऐसे जैविक अनाज के सेवन करके हम अपने शरीर को आयरन, कैल्शियम, फाइबर, प्रोटीन आदि तत्वों से परिपूर्ण हो सकते हैं। निसन्देह ये एक तरह से 'सुपरफूड' हैं। विदेशों में तो मिलेट्स के सहारे बीयर और ब्रेड तक बनाए जाते हैं। आज जब पिज्जा, बर्गर, चाऊमीन और स्पाइसी चीजों की ओर युवा पीढ़ी का ज्यादा रुझान है, तब अगर पूरी दुनिया मोटे अनाज की ओर लौटने का संकल्प कर रही है, तो इसका मतलब यह है कि आने वाला समय न केवल स्वस्थ भारत का होगा,वरन स्वस्थ दुनिया का भी होगा।


मोटा अनाज खाने के कारण हम सबका स्वास्थ्य ठीक रहता है। शरीर का वजन भी नहीं बढ़ता है। जैसा कि मैंने पढ़ा है, अगर बाजरे के आटे का हम सब नियमित उपयोग करें तो हमारा स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। कई तरह के रोग नहीं होंगे। ये अनाज रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते हैं। हमारी पाचन प्रणाली को दुरुस्त करते हैं । हमारे लीवर, किडनी सब ठीक-ठाक काम करते हैं। गठिया, कब्ज, कैंसर से भी हम बचेंगे। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम मिलेट्स की दुनिया में लौटें और जितना हो अधिक हो सके, प्रकृति के नजदीक जाएं। जैविक उत्पादों को महत्व प्रदान करें। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में भी इस तरह के अनाज के महत्व को बताया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि 2023 मिलेट वर्ष तो होगा ही और पूरा देश मोटे अनाज के महत्व को समझेगा और अपने सेहत को सुधारने की दिशा में आगे बढ़ेगा। देश की सभी राज्य सरकारें इस ओर ध्यान देंगी।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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