कुसंगति का दुष्प्रभाव
संगति और कुसंगति दोनों के बारे में भारतीय साहित्य भरा पड़ा है। संगति की प्रशंसा में हमारे देश के ऋषियों-मुनियों ने काफी कुछ कहा है। सत्संगति को परमात्मा से साक्षात्कार का एक माध्यम भी माना गया है। यही वजह है कि कीर्तन, भजन के बाद सत्संग को महत्व दिया गया है।
Created By : ashok on :03-10-2022 14:29:25 अशोक मिश्र खबर सुनेंबोधिवृक्ष
-अशोक मिश्र
संगति और कुसंगति दोनों के बारे में भारतीय साहित्य भरा पड़ा है। संगति की प्रशंसा में हमारे देश के ऋषियों-मुनियों ने काफी कुछ कहा है। सत्संगति को परमात्मा से साक्षात्कार का एक माध्यम भी माना गया है। यही वजह है कि कीर्तन, भजन के बाद सत्संग को महत्व दिया गया है। सत्संग का मतलब है कि अच्छे लोगों की संगति में रहते हुए परमात्मा को याद करना और समाज के उत्थान की दिशा में सतत प्रयत्न करना। वहीं कुसंगति को बुरा और व्यक्ति के विकास में बाधक माना गया है। कहते हैं कि ईरान के एक बादशाह था। वह प्रजा पालक था। वह अपनी प्रजा की भलाई के लिए हर संभव प्रयास करता रहता था। लेकिन उसका बेटा कुसंगति में पड़कर व्यसनी हो गया था। हमेशा शराब के नशे में डूबा रहता था। उसके दोस्त उसको दुर्गुणों की ओर प्रवृत्त होने को उकसाते रहते थे। एक बार वह अपने राज्य की राजधानी से दूर चला गया और उसने अपने पिता को संदेश भिजवाया कि वह कुछ दिनों में आ जाएगा। जब काफी दिन बीत गए, तो बादशाह को चिंता हुई। उन्होंने अपने बेटे के बारे में पता लगवाया और एक दिन उसके पास जा पहुंचे। जब वह उसके तंबू के नजदीक पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उसके बेटे के कुछ दोस्त तंबू से निकलकर एक ओर चले गए। जब बादशाह अपने बेटे के तंबू में पहुंचा, तो उसने कहा कि पिता जी, ज्वर ने अभी कुछ ही देर पहले पीछा छोड़ा है। तब बादशाह ने कहा कि हां, मैंने उन्हें तंबू से निकलते देखा है। सचमुच कुसंगति किसी भयानक ज्वर से कम नहीं होती है। जो व्यक्ति एक बार कुसंगति में पड़ जाता है, तो उसका पीछा जीवन भर नहीं छूटता है। यही वजह है कि हमारे देश में हमेशा संत्सगति करने की प्रेरणा दी जाती है।