ज्यों तिरिया पीहर बसै
इस पर कबीरदास ने कहा कि जिस तरह से कोई युवती अपने पीहर में रहते हुए भी अपने पति को हमेशा याद करती रहती है, ठीक उसी तरह से मनुष्य को संसार में रहते हुए भी भगवान को नहीं भूलना चाहिए।
Created By : ashok on :13-11-2022 15:03:00 अशोक मिश्र खबर सुनेंबोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
कहते हैं कि सांसारिक जीवन किसी तपस्या से कम नहीं है। जो लोग गृहस्थ जीवन बिताते हुए काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर जैसे विकारों से दूर रहते हुए जीवन बिताते हैं, वे किसी तपस्वी से कम नहीं माने जाते हैं। पति-पत्नी के आपसी प्रेम और काम भावना को भारतीय वांग्मय में बड़ा पवित्र माना गया है। समाज सुधारक और संत कबीरदास ने भी पति-पत्नी के प्रेम की महत्ता को कभी कमतर नहीं माना है। बल्कि वे एक साधु के प्रश्न पूछने पर भगवान के स्मरण का तरीका बताते हुए कहते हैं कि ज्यों तिरिया पीहर बसे, सुरति रहै पिय माहि, ऐसे जग जन में रहे, हरि को भूलत नाहि।
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हुआ यह कि एक बार कुछ साधुओं का दल कहीं से घूमता हुआ आया और कबीरदास से मिलने चला गया। कबीरदास के सत्संग करने लगा। धर्म, अध्यात्म की बातें होने लगीं। एक साधु ने अपनी जिज्ञासा कबीरदास के सामने रखी कि मनुष्य संसार में रहते हुए भी कैसे भगवान की स्तुति करे। संसार के प्रपंच उसे भगवान को यााद करने ही नहीं देते हैं। इस पर कबीरदास ने कहा कि जिस तरह से कोई युवती अपने पीहर में रहते हुए भी अपने पति को हमेशा याद करती रहती है, ठीक उसी तरह से मनुष्य को संसार में रहते हुए भी भगवान को नहीं भूलना चाहिए। प्रपंच का काम ही है व्यक्ति के चित्त को अस्थिर करना।
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वह अपना काम करने से नहीं चूकता है, तो फिर इंसान को अपने कर्तव्य से क्यों चूकना चाहिए। इंसान को हमेशा अपने कर्तव्य को ध्यान में रखना चाहिए। यह सुनकर साधु समाज ने कबीरदास को बहुत धन्यवाद दिया क्यों कि उनकी शंका का समाधान हो गया। उन्होंने अपने जीवन में कबीरदास की शिक्षाओं को उतारने का वायदा किया और अपने गंतव्य की ओर चले गए।