गंभीर बीमारी से भी बुरा है कुसंग

भूरिश्रवा ने गुरुकुल में नियम और संयम में रहकर विद्याध्ययन किया और जब उसकी शिक्षा पूरी हो गई, तो विदा के समय आचार्य ऋचीक ने कहा कि वत्स! जीवन में कभी कुसंग में मत पड़ना।

Created By : Manuj on :24-11-2022 15:29:51 अशोक मिश्र खबर सुनें
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अशोक मिश्र

गंभीर बीमारी से भी बुरा है कुसंग

कुसंग यानी बुरी संगत व्यक्ति का जितना नुकसान करती है, उतना कोई भी दुर्गुण नुकसान नहीं करता है। व्याधि तो शरीर को क्षति पहुंचाती है, कभी कभी भयंकर व्याधि होने पर शरीर को नष्ट कर देती है, लेकिन कुसंग शरीर को ही क्षति नहीं पहुंचाती है,

बल्कि चरित्र, ऐश्वर्य, धन-संपदा सबको निगल जाती है। व्यक्ति कुसंग के चलते श्रीहीन हो जाता है। कुसंग की एक प्रेरक कथा सुनाऊं। ब्राह्मण पुत्र भूरिश्रवा कुशाग्र बुद्धि का था। वह आचार्य ऋचीक के गुरुकुल में पढ़ता था। आचार्य अपने सभी शिष्यों को संयम और तप करके अपने जीवन को संयमित रखने की शिक्षा दिया करते थे। उनका कहना था कि कुसंग से व्यक्ति को हमेशा बचकर रहना चाहिए। 

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भूरिश्रवा ने गुरुकुल में नियम और संयम में रहकर विद्याध्ययन किया और जब उसकी शिक्षा पूरी हो गई, तो विदा के समय आचार्य ऋचीक ने कहा कि वत्स! जीवन में कभी कुसंग में मत पड़ना। कहते हैं कि समय पर भूरिश्रवा का शुचिता नामक रूपसी से विवाह हुआ। कुछ दिन तक तो सब ठीक-ठाक चलता रहा। लेकिन कुछ वर्षों बाद कुसंगति में पड़कर भूरिश्रवा अपना यश, धन और वैभव सब गंवा बैठा।

आचार्य ऋचीक तक यह बात पहुंची, तो उन्हें बहुत दुख हुआ। वे अपने मेधावी शिष्य की इस दशा पर व्यथित हो उठे। एक दिन वे भूरिश्रवा के घर पहुंच गए। भूरिश्रवा ने बड़े आदर के साथ उनका स्वागत किया। ऋचीक ने कहा कि यदि तुमने मेरी सलाह पर अमल किया होता, तो शायद इस दशा को नहीं पहुंचते। कुसंग ने तुम्हारे तप, तेज, संयम, यश और वैभव सब कुछ छीन लिया है। यह सुनकर पश्चाताप के आंसू बहाता हुआ भूरिश्रवा उनके पैरों पर गिर पड़ा। उसने दुष्टों का संग त्यागने का संकल्प लिया और पहले की तरह पुन: तेजस्वी और यशस्वी बना।

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