प्रकृति पूजकों का सबसे बड़ा पर्व छठ
भारत में सूर्य की उपासना सदियों से होती चली आ रही है। प्राचीन काल में जब सभ्यता का इतना विकास नहीं हुआ था, तब यह माना जाता था कि जीवन का आधार सूर्य की उष्मा ही है।
Created By : ashok on :31-10-2022 15:42:31 अशोक मिश्र खबर सुनेंबोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
भारत में सूर्य की उपासना सदियों से होती चली आ रही है। प्राचीन काल में जब सभ्यता का इतना विकास नहीं हुआ था, तब यह माना जाता था कि जीवन का आधार सूर्य की उष्मा ही है। यानी सूर्य ही है। दरअसल, जब मनुष्य यह नहीं जानता था कि सूर्य क्या है, तारे क्या हैं, चांद क्या है, तो वह सोचता था कि ये कोई देव हैं। आज विज्ञान की वजह से हम जानते हैं कि सूर्य एक तारा है। चांद उपग्रह है। लेकिन प्राचीनकाल में मनुष्य यह नहीं जानता था। तब अंधेरा होते ही मनुष्यों पर जंगली जीव जंतु हमला कर देते थे। उसे मारकर खा जाते थे।लेकिन जब चांद या सूरज निकल आता था, तो वह अपने को सुरक्षित महसूस करते थे।
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ऐसे में सूर्य और चंद्र का आभार व्यक्त करने के लिए पूजा पद्धति का आविष्कार हुआ। तब यह समझा गया कि उनकी पूजा-आराधना करने से सूर्य और चंद्र प्रसन्न होते हैं और वे हमारी रक्षा करते हैं। बस, इसी विचार ने व्यापक रूप अख्तियार किया, तो सूर्य, चंद्र से आगे बढ़कर धरती, आग, पवन, पानी आदि की भी पूजा की जाने लगी। पूजा की पद्धतियां खोजी और निर्धारित की जाने लगीं। लेकिन जितनी ज्यादा लोकस्वीकृति सूर्य को मिली, उतनी किसी को भी नहीं। छठ पर्व भी सूर्य के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व है। इस दिन उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर अपने और समाज के कल्याण की कामना करते हैं और उसके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। यह प्रकृति को ही जीवन का आधार मानने का पर्व है। यही पर्व बताता है कि हमारी सनातन सभ्यता में पूरी सृष्टि के प्रति आभार व्यक्त करने की परंपरा रही है। यह प्रकृति पूजकों का सबसे बड़ा त्यौहार भी है। इसकी लोकप्रियता में लगातार इजाफा होता जा रहा है।