लोकास्था और भारतीयता का दिव्यदर्शन है छठ महापर्व

ऋग्वेद की ऋचा है-सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च अर्थात सूर्य आत्मा के कारक तत्व हैं। सूर्य की रश्मियों में अप्रतिम शक्तियां विद्यमान रहती हैं।

Created By : ashok on :31-10-2022 14:59:23 डॉ. संजय पंकज खबर सुनें
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डॉ. संजय पंकज
छठ केवल लोक आस्था का महापर्व मात्र ही नहीं है; यह भारतीय जनमानस के उदार आचरण और समरस व्यवहार का दर्शन-निदर्शन है। इस पर्व में किसी धार्मिक आडंबर के अंतर्गत कर्मकांड और पुरोहित वाद या पौरहित्य का सहारा नहीं लिया जाता है। संस्कृति की संरक्षिका और संस्कार की संवाहिका हमारी स्त्री-शक्ति अपनी प्रकृत संचेतना से इसे समर्पित होकर संचालित करती हैं। प्रकृति के सानिध्य में वृहद समाज को संग-साथ लेकर आलोकित होने वाला यह पर्व जीवन संपोषण और संवर्धन का अक्षय ऊर्जा-स्रोत सूर्य का अभिनंदन और उसके प्रति सामूहिक आभार अभिव्यक्त करने का अवसर है। भारतीय सनातन संस्कृति में प्रकृति का विपुल वैभव प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सर्वथा पूज्य है। संपूर्ण जीव जगत के बाह्य और आंतरिक विकास में विराट प्रकृति की जो केंद्रीय भूमिका है, उसे भारतीय मनीषा ने कृतज्ञता के साथ स्वीकारा और उसे देवतुल्य मानते हुए पूजित किया। भारत ऋषि-परंपरा का तत्वबोध और चिंतन से भरा हुआ एक ऐसा देश है जो चेतन ही क्या, जड़ को भी जीवंत मानकर देवता के रूप में प्रतिष्ठित करता है।


ज्ञान-विज्ञान के सारे विस्तार और निष्कर्ष सूर्य की सत्ता को सर्वोपरि मानते और स्वीकारते हैं। सूर्य का जीवन और जगत से प्रत्यक्ष तथा गहरा संबंध है। संसार की जागृति, संपूर्ण गति-मति और शाश्वत जीवन-सातत्य सूर्य के बूते ही सुव्यवस्थित है। प्रकाश में लीन रहने वाला यह भारत अंतर के आलोक को भी जागृत करने के लिए सूर्य का ध्यान करता है और उससे प्रेरित होता है। भारत में वैदिक काल से ही सूयोर्पासना किसी न किसी रूप में प्रचलन में रही है। धीरे-धीरे इसकी व्यापकता बढ़ती चली गई और आज पूरे विश्व में किसी न किसी रूप में सूर्य को जीवन पद्धति से संयुक्त करके उसकी महनीयता को स्वीकारते हुए उसके अमृत्व का प्रत्यक्ष लाभ लिया जा रहा है। योग में तो सूर्य नमस्कार के रूप में पूरा का पूरा एक चक्र ही है जिसमें सर्वांग संपुष्ट होता है। प्राणायाम का एक प्रकार सूर्यभेदन कितना प्राण संवर्धक और बलवर्धक है, यह आज पूरे संसार से छिपा हुआ नहीं है। योग की ताकत असीम है और इस असीम को अनंत आकाश में विहरता हुआ सूर्य अछोर और अकूत बना देता है। बिहार में सूयोर्पासना छठ व्रत के रूप में आत्म नियंत्रण और सामूहिक अनुशासन में सूर्यास्त और सूर्योदय के साथ बड़ी निष्ठा तथा आस्था से की जाती है। इस व्रत में दृढ़ संकल्प के साथ कठोर नियमावली होती है जिसका पालन करना सबके लिए अत्यंत आवश्यक होता है। ऊपरी तौर पर उपवास में व्रती रहते हैं। वे अन्न-जल के त्याग के साथ ही परमात्मा का चिंतन करते हैं। व्रत और उपवास का समन्वय है छठ पर्व!

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ऋग्वेद की ऋचा है-सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च अर्थात सूर्य आत्मा के कारक तत्व हैं। सूर्य की रश्मियों में अप्रतिम शक्तियां विद्यमान रहती हैं। यह संख्या में छ: शक्तियां हैं जो जलने वाली, पाचन क्रिया करने वाली, लोहित करने वाली, आकर्षण करने वाली, वर्षा करने वाली और रस प्रदान करने वाली हैं। सूर्य की ये छ: शक्तियां ही बिहार में 'छठी मैया' कहलाती हैं। छठ ऐसा लोक पर्व है जो स्वच्छता और पवित्रता के साथ आद्यांत संपन्न किया जाता है। आर्थिक रूप से विपन्न व्यक्ति भी अपने आंतरिक भाव को पूर्ण स्वच्छता के साथ इतना संपन्न कर लेता है कि उसमें स्वाभाविक रूप से देवत्व उतर आता है। स्नान और ध्यान से तन, मन और अंत:करण की शुद्धि होती है। शुद्धि से शुचिता पैदा होती है और पवित्रता से व्रत का आरंभ होता है। नहाए-खाए से शुरू होने वाला यह पर्व खरना के उपरांत दूसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य निवेदित करते हुए उसके अगले दिन के सूर्योदय की अभ्यर्थना करते हुए परना के साथ संपन्न होता है। षष्ठी तिथि को अस्ताचलगामी सूर्य और सप्तमी तिथि को प्राची से प्रकट होते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर चार दिवसीय इस महापर्व की संपन्नता पूरी विभुता को प्राप्त करती है। भगवान भास्कर का उदय और अस्त होना जीवन की निरंतरता का संकेत देता है। आत्मा सूर्य समान है। वह अविनाशी और अनश्वर है। भारतीय दर्शन पुनर्जन्म में विश्वास करता है। पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननी जठरे शयनम।


छठ व्रत से जुड़ी हुई कई पौराणिक कथाएं हैं। शिव पुराण के रुद्र संहिता के अनुसार भगवान शिव के तेज से छ: मुख वाले बालक का जन्म हुआ, जिसका पालन पोषण छ: कृतिकाओं (तपस्वी नारियों) ने किया था। इसी से यह बालक कार्तिकेय नाम से विख्यात हुआ। यह छ: कृतिकाएं ही षष्ठी माता या छठी मैया कहलाती हैं। महाभारत के अनुसार सूर्य पुत्र कर्ण काफी देर तक जल में खड़ा होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। जल में खड़ा होकर सूर्य को अर्घ्य देने की यह परंपरा सबसे महत्वपूर्ण है। घंटों जल में खड़ा होकर व्रती डूबते और उगते हुए सूर्य को शुद्धता के साथ बनाए गए पकवान तथा ऋतु के उपलब्ध कंदमूल और फलफूल का अर्घ्य निवेदित करते हैं। च्वयन मुनि की पत्नी सुकन्या ने अपने जरा जीर्ण अंधे पति की आरोग्यता के लिए यह व्रत किया था। इस व्रत के फलस्वरूप च्वयन पूर्ण युवा हुए तथा उन्हें नेत्र दृष्टि भी प्राप्त हुई। मर्यादा पुरुषोत्तम राम सूर्यवंशी थे। ऋषि अगस्त्य ने लंकापति रावण को परास्त करने के लिए भगवान राम को आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ बताया था, जो सूर्य उपासना का एक उच्चस्तरीय प्रयोग था। लंका विजय के बाद भगवान राम और भगवती सीता ने राम राज्य की स्थापना के दिन उपवास कर सूर्य देव की आराधना की थी। यह तिथि कार्तिक शुक्ल षष्ठी थी। छांदोग्य उपनिषद में सूर्य के माध्यम से पुत्र प्राप्ति की बात कही गई है। कुंती ने सूर्य से ही तेज बल और जीव सत्ता प्राप्त करके कर्ण को पैदा किया था। कर्ण सूर्य का मानवीकरण है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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