आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय दल बनने में कांग्रेस की बड़ी भूमिका

भाजपा की रिकार्ड जीत के अतिरिक्त गुजरात चुनाव परिणामों की जो एक बड़ी व विशेष बात कही जा सकती है, तो वह यह कि आम आदमी पार्टी देश की एक राष्ट्रीय पार्टी बन गई है। निश्चित ही अपने छोटे से राजनीतिक सफर में यह उसकी एक बड़ी उपलब्धी मानी जाएगी।

Created By : ashok on :06-01-2023 14:18:46 महेन्द्र प्रसाद सिंगला खबर सुनें

महेन्द्र प्रसाद सिंगला
भाजपा की रिकार्ड जीत के अतिरिक्त गुजरात चुनाव परिणामों की जो एक बड़ी व विशेष बात कही जा सकती है, तो वह यह कि आम आदमी पार्टी देश की एक राष्ट्रीय पार्टी बन गई है। निश्चित ही अपने छोटे से राजनीतिक सफर में यह उसकी एक बड़ी उपलब्धी मानी जाएगी। आप के राजनीतिक उदय से लेकर अभी तक की उसकी राजनीति को देखकर यह बहुत दावे से कहा जा सकता है कि उसके राष्ट्रीय पार्टी बनने में देश पर लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस की एक बड़ी व महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

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निश्चित ही आम आदमी पार्टी का उदय अन्ना आंदोलन से ही हुआ है। भले ही अन्ना आंदोलन एक गैर राजनीतिक आंदोलन था, लेकिन जिस प्रकार आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल का संबंध और संपर्क अन्ना आंदोलन के साथ रहा, उसके मद्देनजर यह कहना पूर्णत: सही होगा कि आम आदमी पार्टी अन्ना आंदोलन की ही देन है। इसके साथ ही यह कहना भी सही होगा कि आम आदमी पार्टी की स्थापना के बाद अन्ना आंदोलन पृष्ठभूमि में चला गया, जो अंतत: समाप्त ही हो गया। बेशक जिसका पूरा श्रेय अरविंद केजरावाल को जाता है। यदि इस संबंध में यह कहा जाए कि यह आंदोलन केजरीवाल की राजनीति का शिकार हो गया, तो गलत नहीं होगा। राजनीतिक पार्टी की स्थापना के साथ ही दिल्ली विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को बहुत बड़ी सफलता मिली जिसमें उसने 70 में से 28 सीटें जीत कर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज की, जिसने कांग्रेस के लगातार 15 वर्षों के शासन के बाद स्वाभाविक ही भाजपा के सत्ता में आने की संभावना पर विराम लगा दिया। यद्यपि उन चुनावों में आप को न तो पूर्ण बहुमत मिला और न ही वह सबसे बड़े दल के रूप में स्थापित हो सकी, लेकिन इसके बावजूद उसकी यह उपलब्धी बहुत बड़ी थी, जिसने दिल्ली की ही नहीं, बल्कि देश की राजनीति की दशा और दिशा बदल दी। दिल्ली विधानसभा में 2015 में 67 और 2020 में 62 सीटें जीतकर उसने यह सिद्ध भी कर दिया।


दिल्ली विधानसभा के 2013 में हुए चुनावों में वहां दो मुख्य पार्टियों कांग्रेस और भाजपा के साथ ही तीसरी नई पार्टी आप ने अपनी सहभागिता की जिसमें भाजपा 70 में से 31 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, तो वहीं आम आदमी पार्टी 28 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर तथा कांग्रेस मात्र 8 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। कोई भी पार्टी 36 के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई। संभवत: उन चुनावों में कांग्रेस को अपनी पराजय का इतना अधिक दुख नहीं हुआ होगा, जितनी खुशी भाजपा के सत्ता में न आ पाने की हुई होगी। इसी खुशी में उसने आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन देकर दिल्ली में उसकी सरकार बनवा दी। निश्चित ही यह कांग्रेस का आत्मघाती कदम था, जो 2015 तथा 2020 के दिल्ली विधानसभा के चुनावों में सिद्ध भी हुआ क्योंकि जहां 2015 के चुनावों में उसका वोट प्रतिशत कम हुआ और सीटें शून्य रह गर्इं। वहीं 2020 के चुनावों में शून्य सीटों के साथ वोट प्रतिशत भी लगभग शून्य ही रह गया। ऐसा करके कांग्रेस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारी, बल्कि कुल्हाड़ी पर ही पैर मार दिया। आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने में कांग्रेस की यह पहली और महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। कितने आश्चर्य की बात है कि आप जैसी नई पार्टी और उसके नेता ने परिपक्व व अनुभवी कांग्रेस को अपने पीछे चलने पर मजबूर कर दिया जिसमें उसने अपने मुख्यमंत्री बनने की इच्छा की पूर्ति करने के लिए कांग्रेस का प्रयोग किया। फिर उसकी उपेक्षा करके उसका त्याग कर दिया।

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पंजाब में प्राय: कांग्रेस और अकाली दल ही दो मुख्य पार्टियॉं होती थीं, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में आप ने 4 सीटें जीतकर, 2017 के विधानसभा चुनावों में उपस्थित होकर अपनी सरकार बनाने की चुनौती पेश कर दी थी। भले ही तब वह सरकार तो न बना सकी, लेकिन फिर भी वहां अपनी उपस्थिति का अहसास अवश्य करा दिया था। इसके बावजूद कांग्रेस के कैप्टन जैसे मजबूत व लोकप्रिय मुख्यमंत्री के होते 2022 के चुनावों में भी आप की सत्ता में आने की संभावनाएं कमजोर ही थी, क्योंकि राजनीतिक गलियारों में कंग्रेस के ही पुन: सरकार बनाने की संभावनाएं अधिक मानी जा रही थीं, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने आश्चर्यजनक रूप से अपनी ही पार्टी का तीन-पांच करते हुए, अपरिपक्वता का परिचय देकर अपनी पार्टी की हार लगभग सुनिश्चित करते हुए आप के लिए सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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