वैमनस्य फैलाकर समाज को बोनसाई बनाने की साजिश

यह सब कुछ पूरे के पूरे समाज को बोनसाई बनाने की एक कुत्सित चाल है। वे चाहते हैं कि जब वे हुंकार भरें, तो हम हिंदुत्व की रक्षा के लिए हथियारबंद होकर घर से निकल पड़ें। इस्लाम खतरे में हैं,

Created By : ashok on :31-01-2023 15:38:01 संजय मग्गू खबर सुनें

संजय मग्गू

आपने बोनसाई पौधे तो जरूर देखे होंगे। बोनसाई वे पौधे होते हैं जिनको उनकी जरूरत से कम मात्रा में पानी, खनिज, मिट्टी देकर बौना बना दिया जाता है। ऐसे पौधों को तारों से भी बांधा जाता है, ताकि इनकी बढ़त पर रोक लगाई जा सके। कुछ ऐसा ही इन दिनों पूरे समाज को बोनसाई बना देने की साजिश रची जा रही है। समाज के कुछ तबके समाज को अपने चाबुक के इशारे से चलाने की कोशिश कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि उनको छोड़कर बाकी समाज का विकास उतना ही हो, जितना वे चाहें। समाज की समझ उतनी ही विकसित हो जितने की वे अनुमति दें।

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अब सवाल यह है कि समाज को बोनसाई बना देने से किसका लाभ है। यह लाभ हमेशा से एक ऐसा समुदाय या गुट कहें, उठाता आया है जो समाज में सबसे ऊंची हैसियत रखता है। आज जो यह पठान बायकाट या पठान समर्थन का खेल खेला जा रहा है। आज जो रामचरित मानस को अप्रासंगिक साबित करने की कोशिश हो रही है, उसकी प्रतियां फाड़ी और जलाई जा रही हैं, यह सब समाज को बोनसाई बनाने देने की ही एक कोशिश भर है। ऐसा भी नहीं है कि इसमें सिर्फ हिंदू शामिल हैं, दलित शामिल हैं या मुसलमान शामिल हैं। इसमें हम सब शामिल हैं। कुछ लोग हमें हिंदू के खांचे में फिट करना चाहते हैं, मुसलमान के खांचे में फिट करना चाहते हैं, दलित, ओबीसी, सवर्ण का गले में पट्टा डालकर अपने इशारे पर नचाना चाहते हैं। यह सब कुछ पूरे के पूरे समाज को बोनसाई बनाने की एक कुत्सित चाल है।

वे चाहते हैं कि जब वे हुंकार भरें, तो हम हिंदुत्व की रक्षा के लिए हथियारबंद होकर घर से निकल पड़ें। इस्लाम खतरे में हैं, सर कलम कर देंगे वाले फतवा जारी करें, तो हम जेहाद के नाम पर हाथ में हथियार लेकर जेहादी नारा लगाते हुए घर से निकल पड़ें। बस यही गलत है। हमें ठंडे मन से यह सोचना होगा न कहीं हिंदू खतरे में है, न इस्लाम, इसाइयत या सिख धर्म खतरे में है। अगर खतरे में है इंसानियत, आपसी भाईचारा। सदिया से मिल जुलकर रहती आई गंगा-जमुनी तहजीब। अगर खतरे में है, तो हमारी शिक्षा व्यवस्था जिसकी बदौलत हम एक अच्छे और सभ्य नागरिक बनकर अपने देश और समाज के लिए कुछ कर सकते हैं। अगर खतरे में है, तो हमारे चिकित्सा संस्थान जहां इलाज के लिए आया हुआ बच्चा बिना दवाइयों और सुविधाओं के लिए दम तोड़ देता है। आज हर वह चीज खतरे में है जिससे मानवता पुष्पित पल्लवित होती है। जिससे हमें अपने मानव होने का एहसास होता है।

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भारत सदियों से धार्मिक देश रहा है। धार्मिकता हमारी पहचान रही है। सनातन धर्म की पहचान हमेशा से ही सतत प्रवाहमान गंगा और यमुना की धारा से रही है। गंगा-यमुना की गोद में जो भी आया, इन महान नदियों ने हमेशा सबका स्वागत किया, अपनी गोद में लिया। सदियों पहले शक आए, हूण आए, कुषाण आए, आभीर आए, यवन, मुगल, तुर्क, ईरानी और अंत में ईसाई आए, लेकिन सनातन धर्म की पहचान तब भी अक्षुण रही और भविष्य में भी रहेगी। बाहर से आने वाले किसी भी मंशा से आए हों, लेकिन सनातन धर्मियों ने उन्हें आत्मसात किया। कुछ खुद बदले, कुछ उन्हें भी बदलने पर मजबूर किया। लेकिन सनातन धर्म का मानवता से नाता कभी नहीं बदला। फिर आज क्यों? हम समाज को बोनसाई बनाने पर तुले हुए हैं?

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