अदाणी का हाइफा पोर्ट हासिल करना चीन को करारी शिकस्त

मंगलवार को इजराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस सौदे को भारत और इजराइल के लिए मील का पत्थर बताया। इजराइल और भारत के रिश्तों के बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं है।

Created By : ashok on :02-02-2023 16:43:42 संजय मग्गू खबर सुनें


संजय मग्गू


इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा अगर किसी कारोबारी की है, तो वह हैं भारत के सबसे बड़े कारोबारी गौतम अदाणी। एक तो हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के चलते उनको हुए नुकसान की चर्चा सब ओर हो रही है। आज यानी बुधवार को जब संसद में केंद्रीय बजट पेश हो रहा था,

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तब भी मिली जानकारी के अनुसार अदाणी ग्रुप की कंपनियों के शेयर गिर रहे थे। इसके बावजूद मंगलवार को अदाणी ग्रुप के लिए दो महत्वपूर्ण बातें हुईं। पहली तो यह कि कल अंतिम दिन होने के बावजूद अदाणी इंटरप्राइजेज के सभी एफपीओ सबस्क्राइब हो गए और लक्ष्य से ज्यादा हुए।

दूसरी सबसे बड़ी बात यह हुई कि कल ही इजराइल के दूसरे सबसे बड़े पोर्ट हाइफा का अधिग्रहण किया है। मंगलवार को इजराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस सौदे को भारत और इजराइल के लिए मील का पत्थर बताया। इजराइल और भारत के रिश्तों के बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं है। नेतन्याहू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच कितनी घनिष्ट मित्रता है, यह भी जगजाहिर है। ऐसे में गौतम अदाणी को हाइफा पोर्ट की डील हासिल करना कोई मुश्किल नहीं था। लेकिन सिर्फ इतने से ही अदाणी को पोर्ट का अधिग्रहण मिल गया, ऐसा भी नहीं है। अगर आपको बीते साल में 19 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति की इजराइल यात्रा को याद करें।

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इसी दिन अप्रत्याशित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इजराइल पहुंच गए थे। इसी दिन बिना किसी पूर्व सूचना या कार्यक्रम के एक कूटनीतिक शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसे नाम दिया गया था-आई2यू2 जिसमें इजराइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री याएर लापिड और यूएई के शासक मोहम्मद बिन जाएद भी मौजूद थे। इजराइल के सबसे बड़े पोर्ट हाइफा को अदाणी को सौंपने की रूपरेखा इसी शिखर सम्मेलन में तय की गई थी। आपको बता दें कि इस डील के लिए अदाणी ग्रुप ने सबसे बड़ी बोली 1.18 बिलियन डॉलर की लगाई है, जबकि इजराइल को इस पोर्ट की डील से 780 मिलियन डॉलर मिलने की उम्मीद थी। इतनी बड़ी बोली लगाने पर इस पोर्ट को हासिल करने की कोशिश में लगे चीन और उनके सहयोगी पाकिस्तान और ईरान भी चौंक गए थे। वह भी तब, जब हाइफा पोर्ट की हालत काफी खस्ता है।

वहां पर अभी आधा-अधूरा काम ही हुआ है। सुविधाएं काफी हद तक नदारद हैं। लेकिन गौतम अदाणी ने किसी की उम्मीद से ज्यादा बोली लगाई और मंगलवार को इसका अधिग्रहण भी कर लिया। दरअसल, हम अगर इस अधिग्रहण को वर्तमान हिंडनबर्ग रिपोर्ट से जोड़कर देखने की कोशिश करेंगे, तो गलत होगा। इस अधिग्रहण की नींव तो काफी पहले ही रख दी गई थी जिसमें अमेरिका, इजराइल और यूएई ने भरपूर मदद की ताकि इसकी बोली हासिल करने में चीन को दरकिनार किया जा सके।

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इजराइल में जब पिछले साल अप्रत्याशित कूटनीतिक शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था, उससे कुछ ही दिन पहले चीन ने इजराइल के एक दूसरे पोर्ट को 25 साल के लीज पर लिया था और वह हाइफा पोर्ट को भी लीज पर लेने के लिए प्रयासरत था। दरअसल, हाइफा पोर्ट की भौगोलिक स्थिति इतनी महत्वपूर्ण है कि यदि गौतम अदाणी इसे संचालित करने में सफल हो जाते हैं, भूमध्य सागर में एशिया और यूरोप के बीच एक बहुत बड़ा हब बन सकता है जिस पर चीन का दखल किसी को स्वीकार नहीं है। न भारत को, न अमेरिका, इजराइल या यूएई को।

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