दिल्ली की पुलिस, महिलाएं और अव्यवस्था

पीसीआर का कोई अता-पता नहीं था, पुलिस चौकी पर ताला जड़ा था, मामले में लीपा-पोती की कोशिश कर रही है पुलिस आदि जैसे कई आरोप लगाए जा रहे हैं। साल 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद से अब तक कई बार दिल्ली पुलिस अपनी किरकिरी करा चुकी है,

Created By : ashok on :11-01-2023 16:38:10 महेंद्र अवधेश खबर सुनें

महेंद्र अवधेश

सुल्तान पुरी इलाके में 31 दिसंबर की रात हुई युवती की मौत के बाद दिल्ली पुलिस एक बार फिर सवालों के घेरे में है। हर शख्स उसे कुसूरवार ठहरा रहा है। पिकेट पर पुलिस मौजूद नहीं थी, पीसीआर का कोई अता-पता नहीं था, पुलिस चौकी पर ताला जड़ा था,

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मामले में लीपा-पोती की कोशिश कर रही है पुलिस आदि जैसे कई आरोप लगाए जा रहे हैं। साल 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद से अब तक कई बार दिल्ली पुलिस अपनी किरकिरी करा चुकी है, सिर्फ बदइंतजामी और बदगुमानी के चलते। दिल्ली पुलिस के आला अफसर विशेष मौकों पर सुरक्षा इंतजामों के लंबे-चौड़े दावे करते नहीं अघाते।

कदम-कदम पर चाक चौबंद व्यवस्था के हवाई दावे कि इतने एसीपी, इतने डीसीपी, इतने इंस्पेक्टर, इतने एसआई, इतने एएसआई और इतनी फोर्स। लेकिन, नतीजा ढाक के वही तीन पात जैसा निकलता है। बावजूद तमाम सुरक्षा इंतजामों के, अपराधी अपनी करतूत को अंजाम देकर आराम से निकल जाते हैं, पहुंच से बहुत दूर। पकड़ में सिर्फ वही आते हैं, जो नौसीखिया होते हैं या फिर जिनसे अनजाने में अपराध हो जाता है।

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सुरक्षित दिल्ली हमेशा से हर राजधानी वासी का एक सपना रहा है। चूंकि दिल्ली देश की राजधानी है, इसलिए यहां देश के दूसरे हिस्सों या विदेशों से जो भी शख्स आता है, उसे सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम की अपेक्षा रहती है। लेकिन अंतत: उसे निराशा ही हाथ लगती है। दिल्ली वाले तो हमेशा असुरक्षा की भावना से ग्रस्त रहते हैं। कामकाजी महिलाएं-युवतियां और छात्राएं घर वापस आने तक आशंकित रहती हैं।

निर्भया कांड के बाद उम्मीद की एक किरण दिखी थी कि इस हादसे से दिल्ली पुलिस सबक लेगी, लेकिन उसके कुछ ही समय के बाद हुई ताबड़तोड़ वारदात ने राजधानी वासियों की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। आज अपराधियों के हौसले बुलंद हैं, वे सरेआम किसी की हत्या कर रहे हैं, लूट-रहजनी कर रहे हैं। यही नहीं, वे पुलिस पर भी हमलावर हैं। अभी हाल में मायापुरी इलाके में किसी शिकायत की जांच करने गए एएसआई को मौके से पकड़े गए आरोपी झपटमार ने चाकू मारकर घायल कर दिया। कहीं कोई पुलिस कर्मी की वर्दी फाड़ रहा है, तो कहीं मारपीट कर लूट रहा है।
खैर, यह तो हुआ सिक्के का एक पहलू कि पुलिस अपने कर्तव्यों का पालन ठीक तरीके से नहीं करती। लेकिन, दिल्ली को सुरक्षित बनाना हमारी भी जिम्मेदारी है। हम क्या करते हैं? क्या सुरक्षा व्यवस्था को लेकर हमारा-आपका कोई फर्ज नहीं बनता? हम सड़क पर अपना वाहन तेज रफ्तार में दौड़ाते हैं

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और जब कहीं पुलिस हमें रोकने की कोशिश करती है, तो हम उस पर अपना वाहन चढ़ा देते हैं। ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिनमें वाहन चालकों ने चेकिंग कर रहे पुलिस कर्मी को टक्कर मार दी, बोनट पर लटका कर कोसों दूर ले जाकर उसे छोड़ा। गली-मुहल्लों की सड़कें हों या फिर आम रास्ते, नव धनाढ्य परिवारों के युवाओं की मनमानी सहज देखने को मिल जाती है। यही वजह है कि पुलिस भी कभी-कभी खुद को ढीला छोड़ देती है। हम अक्सर पुलिस की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाते हैं कि अगर उसने तत्परता बरती होती, तो फलां हादसा न होता। यह न होता, वह न होता। हम क्या करते हैं? अपनी सुरक्षा के प्रति हम कितने सतर्क रहते हैं?

यहां आप सवाल उठा सकते हैं कि अपने कर्तव्य पालन के लिए पुलिस को वेतन-भत्ते एवं अन्य दूसरी सुविधाएं सरकार से मिलती हैं, इसलिए आपकी सुरक्षा करना उसकी जिम्मेदारी है। लेकिन, खुद के प्रति हमारे क्या कर्तव्य है, यह महसूस और स्वीकार करने की जहमत हम नहीं उठाना चाहते।
सड़कों पर खाकी वर्दी में लिपटे जो पुलिस कर्मी हमें-आपको नजर आते हैं न, वे भी हम सबकी तरह हाड़-मांस के पुतले हैं। हमारे-आपके घर-आंगन से निकले हुए लोग हैं। वे किसी कारखाने का प्रोडक्ट नहीं हैं, जिसे रॉ मैटेरियल से तैयार किया जाता है। उनमें भी संवेदना है, कुछ करने का जज्बा है,

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हौसला है। लेकिन, उनकी एक सीमा भी है। चलिए, मान लेते हैं कि नव वर्ष की पूर्व संध्या पर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था के बिंदु पर पुलिस की ओर से किसी हद तक कोताही बरती गई। लेकिन, क्या इस वारदात अथवा ऐसी अन्य वारदातों के लिए सिर्फ पुलिस ही जिम्मेदार है? क्या सुरक्षा को लेकर हमारा-आपका कोई फर्ज नहीं बनता? दरअसल, विडंबना यह है कि हमें अपने नागरिक अधिकारों का बोध तो है, लेकिन बतौर नागरिक हमारे कर्तव्य क्या हैं, इसका बोध रंचमात्र नहीं है। इस बाबत हमें कोई मलाल भी नहीं है!
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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