चौरी चौरा घटना का आजादी के आंदोलन में है महत्वपूर्ण स्थान, शहीद हुए थे 19 स्वतंत्रता सेनानी, जानें अन्य अनसुनी बातें
यू टयूब चैनल देश रोजना पर इन दिनों प्रतिदिन आजादी के सुने अनसुने किस्से पेश किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में शुक्रवार को देश रोजाना के ग्रुप संपादक संजय मग्गू ने हमारे बीच चौरी चौरा कांड पेश किया। नीचे दिए लिंक पर क्लिक कर आप इसकी वीडियो देश सकते हैं।
Created By : Shiv Kumar on :05-08-2022 18:42:10 चौरी चौरा घटना खबर सुनेंदेश रोजाना, फरीदाबाद
नमस्कार मैं संजय मग्गू हूं, स्वागत है आपका हमारे यू टयूब चैनल देश रोजना पर--------हम मना रहे हैं आजादी का अमृत महोत्सव, जिसके जश्न को और दमदार बनाने के लिए देश रोजाना आपको अगस्त से हर रोज बता रहा है आजादी के एक सुने अनसुने किस्से की पूरी कहानी,,,,,, इसी कड़ी में शुक्रवार को हम आपके लिए लेकर आए हैं आजादी के आंदोलन का एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम, जिसे इतिहास में चौरी चौरा की घटना के नाम से जाना जाता है। चौरी चौरा की ये घटना इसलिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि साल 1922 में जब ये घटना हुई उस वक्त आजादी का आंदोलन एक नयी उर्जा के साथ आगे बढ़ चुका था। गांधी जी के नेतृत्व में अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हर कोई साथ हो लिया था। क्या कांग्रेसी, क्या भारतवासी, पूरा भारत जैसे कांग्रेस और कांग्रेस ही समूचा पूरा भारत,,, सब अहिंसक आंदोलनकारी गांधी जी के पीछे चल पड़े थे लेकिन चौरी चौरा में हुई हिंसा के कारण अचानक महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को वापस ले लिया और कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं, मोती लाल वोहरा से लेकर सी आर दास, रवीन्द्र नाथ टैगोर तक ने गांधी जी के फैसले का खुलकर विरोध किया। सुभाष चंद बोस ने तो यहां तक कह दिया था कि गांधी जी का ये फैसला एक राष्ट्रीय आपदा जैसा है।
19 भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत के बारे में जानें
वैसे तो इतिहास में चौरी चौरा की इस घटना को 23 अंग्रेजी अधिकारियों को जिंदा जलाए जाने को लेकर ज्यादा जाना जाता है। लेकिन हम आज आपको उन 19 भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत के बारे में बताएंगे जो हंसते हंसते आजादी के संग्राम की सफलता के लिए शहादत को चूम गए। हम आपको ये भी बताएंगे कि आखिर जब असहयोग आंदोलन पूरे देश में अहिंसक तरीके से चल रहा था तो चौरी चौरा में ऐसा क्या हुआ कि वहां हिंसा भड़क गई। क्या उस घटना का कोई तात्कालिक कारण था या उसके पीछे अंग्रेजो से क्रांतिकारियों का कुछ पुराना रोष था जो उस दिन अंग्रेजो पर पहाड़ की तरह टूट पड़ा।
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स्वतंत्रता सेनानियों ने जिंदा जलाकर मार डाले थे कई पुलिसकर्मी
बात चौरी चौरा की हो रही है तो सबसे पहला सवाल ये कि आखिर इस घटना को चौरी चौरा के नाम से क्यों जाना जाता है। आखिर ये चौरी चौराी है क्या... वैसे तो अधिकतर लोग जानते होंगे लेकिन जो नहीं जानते उनकी जानकारी के लिए बता दूं कि चौरी चौरा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से 26 किलोमीटर दूर एक जगह है जहां आजादी के संघर्ष में एक एतिहासिक घटना घटित हुई थी। चौरी चौरा यहां का एक पुलिस स्टेशन भी जिसके अंदर स्वतंत्रता सेनानियों ने कई पुलिसकर्मियों को जिंदा जलाकर मार दिया था। घटना है फरवरी 1922 की, जब गांधी जी ने पूरे देश में अहयोग आंदोलन की शुरूआत कर दी थी। असहयोग आंदोलन का मतलब, अंग्रेजी सरकार के प्रति पूरा असहयोग। वैसे असहयोग आंदोलन की शुरूआत महात्मा गांधी ने 1 अगस्त 1920 को थी। यह आंदोलन अंग्रेजो द्वारा प्रस्तावित अन्नयापूर्ण कानूनों और कार्यों के विरोध में देशव्यापी अहिंसक आंदोलन था। इस आंदोलन का उद्देश्य था, स्वराज्य ही अंतिम उद्देश्य है। लोगों ने अंग्रेजो से असहयोग करते हुए उनके सामान का बहिष्कार शुरू कर दिया और देशी सामान का इस्तेमाल शुरू किया।
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इस कारण इतिहास की महत्वपूर्ण घटना बना चौरी चौरा कांड
इसी बीच पूरे देश में जहां ये अहयोग आंदोलन सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा था वहीं चौरी चौरा में जनवरी 1922 में कुछ ऐसी घटनाएं हुई जिन्होंने चौरी चौरा की घटना को इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना बना दिया। हुआ यूं कि चौरी चौरा की घटना से 10 दिन पहले यहां के डुमरा बाजार में कांग्रेस के 10-12 कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। इस बाजार का मालिक संत बक्स हुआ करता था। संत बक्स ने उन कार्यकर्ताओं को वहां से भगा दिया। जिससे कार्यकर्ता काफी नाराज हो गए। लेकिन इसके बाद 31 जनवरी को कांग्रेस के करीब 4000 कार्यकर्ता यहां फिर धरना देने पहुंच गए। उस दिन संख्या बडी थी तो कुछ नहीं हुआ। लेकिन जैसे ही 2 फरवरी को चौरी चौरा की घटना से दो दिन पहले फिर से कुछ कांग्रेस के करीब 50 कार्यकर्ता धरना देने बाजार पहुंचे, इनमें भगवान अहिर, नजर अली, और लाल मुहम्मद साई भी थे, जैसे ही ये सब बाजार पहुंचे तो बाजार के मालिक संत बक्स के लोगों ने उनके साथ मारपीट की और बाद पुलिस बुलवाकर भगवान अहिर और दो अन्य कार्यकर्ताओ को थाने ले जाकर पीटा भी गया। ये बात कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को भीतर तक घायल कर गई। क्रांतिकारियों को सूचना मिली की संत बक्स के कहने पर ही थानेदार गुप्तेश्वर सिंह ने उनके तीन कार्यकर्ताओं को जेल भेजा और इस तरह क्रांतिकारी, गुप्तेश्वर सिंह से भी खफा हो गए।
अब चौरी चौरा की घटना का दिन, यानि 4 फरवरी आ चुकी थी। तीन कार्यकर्ताओं से हुई मारपीट का विरोध करने के लिए अब मुंडेरी बाजार में 800 से ज्यादा लोग जमा हो गए थे। लोगों की भीड़ को देखते हुए दरोगा गुप्तेश्वर सिंह ने गोरखपुर से और ज्यादा फोर्स बुला ली। जिनके पास बंदूके भी थी। इधर फोर्स की संख्या जितनी बढ़ रही थी और उधर क्रांतिकारियों की तादात उसकी दोगुनी होती जा रही थी।
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पुलिस की फायरिंग में शहीद हो गए थे 11 कार्यकर्ता
इसी बीच बढ़ती भीड़ पर काबू पाने के लिए, संत बक्स के यहां काम करने वाला एक शख्स, अवधू तिवारी भी वहां पहुंचा। अब क्योंकि क्रांतिकारी भीड़ संत बक्स सिंह से पहले ही खफा थी, तो अवधू तिवारी को देखते ही भीड़ और उग्र होने लगी, और भीड़ ने गुप्तेश्वर सिंह के थाने के बाहर प्रदर्शन तेज कर दिया, इसी दौरान गुप्तेश्वर सिंह ने एक कार्यकर्ता के सिर से गांधी टोपी उतारी और उसे जूतो के नीचे मसलने लगा। फिर क्या था,,, गुप्तेश्वर सिंह के इस कदम ने चिंगारी को धधकती ज्वाला बना दिया और देखते ही देखते कुछ ही मिनटों में गुस्सा इस कदर भड़क गया कि कार्यकर्ता और पुलिस आपस में भिड़ गए। फिर काबू पाने के लिए पुलिस ने कार्यकतार्ओं पर गोली चलानी शुरू कर दी, पुलिस की इस फायरिंग में 11 कार्यकर्ता शहीद हो गए और 50 से ज्यादा घायल हुए।
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केरोसिन तेल लाकर थाने में आग लगा दी, इसके बाद का पूरा मामला
पुलिस ने इस दौरान बिना रुके इतनी फायरिंग की थी कि गोलियां खत्म होने लगी, लेकिन इधर कार्यकर्ताओं का हुजूम एक बार फिर वापस लौटने लगे, जिसे देख पुलिस के कुछ जवान खुद को बचाने के लिए थाने की ओर भागने लगे। सभी पुलिस कर्मियों ने अपने आप को एक लॉकअप के अंदर बंद कर लिया। कुछ ही देर में गुप्तेश्वर सिंह भी उसी थाने की ओर भागा। गुस्साए-बौखलाए कार्यकर्ताओं ने इसे अपने लिए मौका माना और उन्होंने पास से ही केरोसिन तेल लाकर थाने में आग लगा दी और 23 पुलिसकर्मियों को थाने के अंदर जला दिया। इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए मार्शल लॉ लागू किया और पुलिस ने 6000 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया, इस दौरान 1000 लोगों से पूछताछ भी की गई। आखिरकार 225 पर मुकदमा चलाया गया और कांग्रेस के एक कार्यकर्ता मीर शिकारी ही इस केस में सरकारी गवाह बन गए। जिसके बाद जज एचई होम्स ने 9 जनवरी 1923 को अपना फैसला सुनाया। इस फैसले में 172 आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई। बाद में मदन मोहन मालवीय ने ये केस लड़ा और तब 19 आरोपियों को फांसी दी गई, 16 लोगों को काला पानी भेजा गया और 38 लोगों को बरी कर दिया गया। इतिहास के पन्नों में इन 19 शहीदों के नाम तो अंकित हैं लेकिन बच्चा बच्चा इनके नाम को नहीं पहचानता,,,, लेकिन शहादत की पहचान अमित होती है,,,,, जो परिचय की मौहताज नहीं रह जाती,,, जब जब चौरी चौरा का नाम लिया जाएगा,,, इनकी शहादत खुद ब खुद यादों में ताजा होती रहेगी। इन सभी 19 स्वतंत्रता प्रेमियों और आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले आजादी के मतवालों को 2 से 11 जुलाई के बीच 1923 में एक झ्र एक कर फांसी पर लटका दिया गया। चौरी चौरा घटना के बाद शहीद हुए 19 सपूतों में विक्रम, दुदही, भगवान, अब्दुल्ला, काली चरण, लाल मुहम्मद, लौटी, मादेव, मेघू अली, नजर अली, रघुवीर, रामलगन, रामरूप, रूदाली, सहदेव, मोहन, संपत, श्याम सुंदर और सीताराम शामिल थे। चौरी चौरा घटना के 52 साल बाद गोरखपुर में इन शहीदों की याद में चौरी चौरा स्मृति के रूप में 12.2 मीटर ऊची मीनार बनवाई गई, फिर इंदिरा सरकार के दौर में साल 1982 में चौरी चौरा स्मारकर बनवाकर इन सभी 19 शहीदों के नाम उसपर अंकित कराए गए, अभी कुछ साल पहले इस इस स्मारक का फिर से सौंदर्यीकरण कराया गया और जनवरी 2021 में लोकार्पण किया गया, तब शहीदों के उपनाम हटा दिए गए, सिर्फ नाम ही अंकित हैं,,,, इसे लेकर काफी विवाद भी हुआ,,,, खैर.... शहीद होने वालों ने निस्वार्थ प्राणोंका बलिदान, अपनी शहादत दी,,, नाम दर्ज हो या उपनाम,,, ये तमाम शहीद न सिर्फ इतिहास में बल्कि हर हिन्दुस्तानी के जहन में अमर हैं,,,, नाम भले न याद हों,,, लेकिन इनकी शहादत को हर दिन सौ-सौ नमन... आशा करते हैं आपको हमारी आज की ये पेशकश पसंद आई होगी। आजादी के दिलचस्प किस्से-कहानियां और देश दुनियां की खबरों को जानने के लिए देखते, देश रोजाना। नमस्कार।