राम मंदिर में सहयोग से मजबूत होंगे भारत-नेपाल के रिश्ते

नेपालवासियों के राम मंदिर के लिए दिये जा रहे इस सहयोग से भारत नेपाल के प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक रिश्ते और मजबूत होंगे और सुदृढ़ होंगे।

Created By : ashok on :01-02-2023 17:43:30 अशोक मधुप खबर सुनें
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अशोक मधुप
चीन या अन्य कोई देश कितनी भी कोशिश करे भारत-नेपाल के सदियों से चले आ रहे रोटी-बेटी और श्रद्धा-आस्था के रिश्ते कभी कम नहीं होंगे। रिश्ते खराब करने की चीन की कोशिश जारी हैं, इसके बीच नेपाल ने अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के रामलला के बाल स्वरूप और सीतामाता की मूर्ति बनाने के लिए पवित्र काली गंडकी नदी से निकलने वाले शालीग्राम की बड़ी शिलाएं भेजी है। नेपाल के जानकी मंदिर के निवासियों ने राम मंदिर में लगने वाली भगवान राम की मूर्ति के धनुष भेजा है। नेपालवासियों के राम मंदिर के लिए दिये जा रहे इस सहयोग से भारत नेपाल के प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक रिश्ते और मजबूत होंगे और सुदृढ़ होंगे।

किसी दूसरी शक्ति के हथकंडे आस्था के इन रिश्तों को कमजोर नही कर सकते। अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बन रहा है। इस मंदिर के निर्माण के कार्य जारी है। मंदिर निर्माण को देश में धन संग्रह का बड़ा अभियान चला। देशवासियों ने दोनों हाथों मंदिर के लिए दान दिया। देश से ही इतना धन, सोना-चांदी एकत्र हो गया कि बाहरी सहयोग की जरूरत ही नहीं पड़ी। धीर-धीरे मंदिर अपना स्वरूप लेने लगा। दुनिया भर के हिंदू धर्मावलंबी इस बनते भव्य मंदिर को बनता देखकर गौरव महसूस कर रहे हैं। सबकी इससे आस्थाएं जुड़ी हैं। वे इसमें ऐन-केन प्रकरेण सहयोग करना चाहते हैं।

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ऐसा ही बड़ा प्रयास नेपाल ने किया। करीब सात महीने पहले नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री बिमलेन्द्र निधि ने राम मंदिर निर्माण ट्रष्ट के समक्ष प्रस्ताव रखा कि अयोध्या धाम में भगवान श्रीराम के इतने भव्य मंदिर का निर्माण हो ही रहा है, तो जनकपुर और नेपाल की तरफ से इसमें कुछ ना कुछ योगदान होना चाहिए। बिमलेन्द्र निधि जानकी यानी सीता की नगरी जनकपुरधाम के सांसद भी हैं। मिथिला में बेटियों की शादी में ही कुछ न कुछ देने की परम्परा रही है।

बल्कि शादी के बाद भी अगर बेटी के घर में कोई शुभ कार्य हो रहा हो या कोई त्यौहार मनाया जा रहा हो, तो आज भी मायके कुछ ना कुछ संदेश किसी ना किसी रूप में दिया जाता है। इसी परंपरा के तहत बिमलेन्द्र निधि ने ट्रष्ट और उत्तर प्रदेश सरकार के साथ ही भारत सरकार के समक्ष भी ये इच्छा जताई कि अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर में जनकपुर और नेपाल का कोई अंश रहे। भारत सरकार और राम मंदिर ट्रष्ट के तरफ से हरी झंडी मिलते ही हिन्दू स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद ने नेपाल के साथ समन्वय करते हुए ये तय किया गया कि चूंकि अयोध्या में मंदिर का निर्माण दो हजार वर्षों के लिए किया जा रहा है, इसलिए इसमें लगने वाली मूर्ति में उस तरह का पत्थर लगाया जाए जो इतने समय तक चल सके। इसके लिए नेपाल सरकार की कैबिनेट की बैठक में पवित्र काली गंडकी नदी के किनारे निकलने वाले शालीग्राम पत्थरों को अयोध्या भेजने के लिए अपनी सहमति दे दी। सहमति के बाद ऐसे पत्थर को ढूंढने के लिए नेपाल सरकार ने जियोलॉजिकल और आर्किलॉजिकल समेत वाटर कल्चर को जानने समझने वाले विशेषज्ञों की एक टीम बनाई और गंडकी नदी क्षेत्र में भेजी। इस टीम अयोध्या भेजने के लिए जिन दो पत्थर का चयन किया, वह साढ़े छह करोड़ साल पुराने है। इसकी आयु अभी भी एक लाख वर्ष तक रहने की बात बताई गई है।

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जिस काली गंडकी नदी के किनारे से ये पत्थर लिए गए है, वो नेपाल की पवित्र नदी है। ये दामोदर कुंड से निकल कर भारत में गंगा नदी में मिलती है। दुनिया की ये अकेली ऐसी नदी है जिसमें शालीग्राम के पत्थर पाए जाते हैं। इन शालिग्राम की आयु करोड़ों साल की होती है। इतना ही नहीं, भगवान विष्णु के रूप में शालीग्राम पत्थरों की पूजा की जाती है। इस कारण से इन पत्थरों को देवशिला भी कहा जाता है। इस पत्थरों को यहां से उठाने से पहले विधि-विधान के हिसाब से क्षमा पूजा की गई। फिर क्रेन के सहारे पत्थरों को ट्रक पर लादा गया। एक पत्थर का वजन 27 टन जबकि दूसरे पत्थर का वजन 14 टन बताया गया है। यह शिलांए जहां-जहां से गुजर रही है, वहां पूरे रास्ते भर में भक्तजन और श्रद्धालु इसके दर्शन और पूजन कर रहे हैं। शिलाओं को देखकर लगता है कि वह शिला नहीं अपितु भगवान राम और माता सीता की मूर्ति हों। इन शिलाओं को अच्छी तरह सजाया गया है।


गंडकी प्रदेश के संस्कृति मंत्री पंचराम तमु ने कहा कि पोखरा में गंडकी प्रदेश सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री खगराज अधिकारी ने इसे जनकपुरधाम के जानकी मंदिर के महन्थ को विधिपूर्वक हस्तांतरित किया है। हस्तांतरण करने से पहले मुख्यमंत्री और प्रदेश के अन्य मंत्रियों ने शालीग्राम पत्थर का जलाभिषेक किया। संस्कृति मंत्री पंचराम तमु ने कहा कि भारत और नेपाल हिन्दुत्व के नाते से आपस में भी जुड़े हंै। ये भगवान के नाते से भी जुड़ा है। हम ये शिलांए ये समझकर भेज रहे हैं कि भारत के साथ हमारा जो आत्मीय संबंध है।

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भगवान राम के साथ जो आत्मीय संबंध है, वो कभी नहीं टूटे। अयोध्या में निमार्णाधीन राम मंदिर के मुख्य गर्भगृह में नेपाल की पवित्र नदी काली गण्डकी में मिली शिलाओं से भगवान राम की बालस्वरूप और माता सीता की मूर्तियों का निर्माण किया जाएगा। इन शिलाओं से मूर्ति बनने में नौ माह का समय लगेगा। उधर रामजन्म भूमि तीर्थक्षेत्र के सदस्य कामेश्वर चौपाल के अनुसार नेपाल से आने वाली शिलाओं के मूर्ति निर्माण से बचे छोटे छोटे कणों को भी आवश्यक्ता के अनुसार प्रयोग किया किया जाएगा। इन शिलाओं का प्रत्येक कण कीमती है। इन कणों को रामदरबार में भी लगाया जा सकता है। सनातन परंपरा के अनुसार शालिग्राम को विष्णु के स्वरूप में पूजतें हैं, इसलिए ट्रस्ट का प्रयास होगा कि इन शालिग्राम शिलाओं का कोई कण व्यर्थ न जाए।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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