एकाग्र चित्त होकर करनी चाहिए साधना
ठीक ऐसा ही हुआ था रानी रासमणि के साथ। रानी रासमणि ने रामकृष्ण परमहंस को एक मंदिर में पुजारी रख दिया। वह सुबह-शाम पूजा करते और बाकी समय में वह साधना किया करते थे।
Created By : ashok on :06-11-2022 15:09:10 अशोक मिश्र खबर सुनेंबोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
कहते हैं कि भक्त और भगवान के बीच जब तक तादात्म्य स्थापित नहीं होता है, तब तक भक्ति का कोई मतलब नहीं होता है। आजकल ज्यादातर मामलों में देखने को मिलता है कि व्यक्ति पूजा तो अपने आराध्य की कर रहा होता है, लेकिन उसके मन में ऊहापोह किसी दूसरी समस्या को लेकर चलती रहती है। वह जोर-जोर से भजन या मंत्र का उच्चारण कर रहा होता है, लेकिन उसका दिमाग किसी घरेलू, व्यावसायिक या दूसरी तरह की समस्या में उलझा होता है।
ये भी पढ़ें
हिमालय पर धंसते शहर किंकर्तव्यविमूढ़ सरकार
ठीक ऐसा ही हुआ था रानी रासमणि के साथ। रानी रासमणि ने रामकृष्ण परमहंस को एक मंदिर में पुजारी रख दिया। वह सुबह-शाम पूजा करते और बाकी समय में वह साधना किया करते थे। उनकी पूजा अर्चना और ज्ञान को देखते हुए रानी रासमणि बहुत प्रभावित हुईं। वह समझ गई कि यह सामान्य पुजारी नहीं है, बल्कि वह महापुरुष है। वह उनका बहुत आदर करने लगीं। वह अक्सर उनके सत्संग में शामिल होती थीं। हालांकि दूसरे लोग रामकृष्ण परमहंस को एक साधारण पुजारी ही समझते थे। एक बार की बात है। रानी रासमणि मंदिर पहुंची, तो उन्होंने स्वामी रामकृष्ण से मां काली पर भजन सुनाने को कहा।
स्वामी जी ने भजन सुनाना शुरू किया। थोड़ी देर बाद स्वामी रामकृष्ण समझ गए कि रानी बेमन से भजन सुन रही हैं। उनका मन कहीं किसी पारिवारिक समस्या में उलझा हुआ है। यह देखकर स्वामी जी ने एकाएक रानी रासमणि के मुंह पर एक तमाचा जड़ दिया और कहा कि मां काली का भजन सुनते समय एकाग्रचित्त होना चाहिए। इस पर रानी स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ीं और कहा कि मैं आज एक मुकदमे के चक्कर में उलझी हुई थी। आज से कभी ऐसा नहीं होगा। मुझे माफ कर दीजिए।