फरीदाबाद के राजीनीतिक दिग्गजों ने भी चौपाल से भरी विधानसभा की उड़ान

पंचायती राज संस्थाओं से होते हुए विधानसभा तक पहुंचने वाले नेताओं में पहले मेवला महाराजपुर व उसके बाद बड़खल से विधायक बने महेंद्र प्रताप सिंह, बल्लबगढ़ से विधायक बने राजेंद्र सिंह बीसला तथा पृथला से विधायक रहे तक चंद शर्मा व रघुवीर सिंह तेवतिया शामिल हैं।

Created By : Manuj on :05-11-2022 20:09:33 पंचायती राज संस्थाएं खबर सुनें

मनुज मग्गू, फरीदाबाद
पंचायती राज संस्थाएं जिनमे पंच, सरपंच, ब्लॉक समिति तथा जिला परिषद् के सदस्य शामिल होते हैं, से राजनीति की ए-बी-सी-डी पढ़ कर कई नेता सफल राजनीतिज्ञ बने हैं। मानें तो पंचायती राज संस्थाओं को राजनीति की प्राथमिक पाठशाला माना जाता है। हरियाणा प्रदेश में ऐसे कई नेता हैं जो कि गांव की चौपाल से सूबे की विधानसभा तथा देश की लोकसभा तक पहुंचे हैं। फरीदाबाद जिले में भी पंचायती राज संस्थाओं के पदों पर रहने के बाद कैबिनेट स्तर के मंत्री व प्रदेश स्तरीय विभागों में चेयरमैन तथा विधायक रहे।

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गांव की चौपाल से तय किया विधानसभा का सफर

पंचायती राज संस्थाओं से होते हुए विधानसभा तक पहुंचने वाले नेताओं में पहले मेवला महाराजपुर व उसके बाद बड़खल से विधायक बने महेंद्र प्रताप सिंह, बल्लबगढ़ से विधायक बने राजेंद्र सिंह बीसला तथा पृथला से विधायक रहे तक चंद शर्मा व रघुवीर सिंह तेवतिया शामिल हैं। इन सभी नेताओं के सफल राजनीतिक करियर को देख कर अब कई उभरते हुए नेता पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव मैदान में उतर रहे हैं तथा विधानसभा तक पहुंचने के हसीन ख्वाब बुन रहे हैं। जिले में कई ऐसे युवा हैं जो कि सरपंच, पंचायत समिति और जिला परिषद का चुनाव लड़ने बाद में प्रदेश की राजनीति में बड़ा ओहदा प्राप्त करने की इच्छा है।

21 साल की उम्र में सरपंच बने महेंद्र प्रताप

कांग्रेस के नेता महेंद्र प्रताप सिंह प्रदेश की राजनीति में जाना-पहचाना नाम है। राजनीति की शुरुआत उन्होंने भी पंचायती संस्थाओ से की तथा 21 वर्ष की आयु में 1966 में नवादा के सरपंच चुने गए। 1972 में वे फरीदाबाद पंचायत समिति के चेयरमैन बने। 1977 में विधानसभा का पहला चुनाव मेवला महाराजपुर से लड़ा, जिसे पूर्व मंत्री गजराज बहादुर नागर से 350 वोटों से हार गए। 1982, 1987 व 1991 में मेवला महाराजपुर से ही चुनाव लड़ कर विधायक बने तथा 1991 में भजनलाल सरकार में मंत्री बने। 1996 व 2000 में कृषणपाल गुर्जर से चुनाव हार गए। 2004 व 2009 फिर से विधायक बने और भूपेंद्र सिंह हुड्डा रकार में केबिनेट मंत्री रहे। 2014 में सीमा त्रिखा ने उन्हें बड़खल से हरा दिया।

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एक समय ही विधायक व सरपंच रहे बीसला


बल्लबगढ़ के पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह बीसला 1977 में निर्दलीय तथा दूसरी बार 1991 में कांग्रेस के टिकट पर बल्लभगढ़ से विधायक बने। 1994 में पंचायती राज अधिनियम लागू होने के बाद पहली बार पंचायती राज संस्थाओं के हुए। चुनाव में ग्रामीणों ने उन्हें विधायक के साथ-साथ सर्वसम्मति से गांव दयालपुर का निर्विरोध सरपंच भी चुन दिया। वे पूरी योजना विधायक के साथ-साथ गांव के सरपंच रहे। इस दौरान वे प्रदेश के पहले वित्तायोग के चेयरमैन भी बने। सरपंच बनने के बाद भी 2000 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर विधानसभा चुनाव में लाडे तथा बीजेपी के कद्दावर नेता रामविलास शर्मा को हराकर विधायक बने। 2009 के विधानसभा चुनाव में बीसला इनेलो की टिकट पर पृथला से चुनाव लाडे, लेकिन हार गए।

जिला परिषद् से विधायक की कुर्सी तक टेकचंद का सफर


पृथला से बसपा की टिकट पर 2014 में विधायक बन कर मनोहर सरकार को समर्थन देने वाले भाजपा नेता टेकचंद शर्मा की चुनावी राजनीति की शुरुआत जिला परिषद के चुनाव से हुई। पंचायती राज लागू होने के बाद 1994 में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में जिला परिषद का चुनाव लड़े और जीते तथा फरीदाबाद जिला परिषद के वाइस चेयरमैन चुने गए। तत्कालीन चेयरमैन दिनेश मलिक के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर टेकचंद शर्मा कार्यकारी चेयरमैन बने। टेकचंद शर्मा ने 2009 के में पृथला से बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी रघुबीर सिंह तेवतिया से हार गए। 2014 के विधानसभा चुनाव टेकचंद फिर बसपा की टिकट पर चुनाव लड़े और रघुबीर सिंह तेवतिया को हराकर विधानसभा पहुंचे।

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रघुबीर को विधायक बनने के बाद भी सरपंच कहते थे लोग


पृथला विधानसभा क्षेत्र के अस्तित्व में आने के बाद पहले विधायक बने रघुवीर सिंह तेवतिया का भी राजनीतिक सफर पंचायत से ही शुरू हुआ। तेवतिया ऐसे नेता रहे हैं, जिन्हें उनके समर्थक विधायक बनने के बाद भी सरपंच से संबोधन देते थे। रघुवीर सिंह तेवतिया वर्ष 1982 में पहली बार अपने गांव जनौली के सरपंच चुने गए। 1982 से लगातार तीन बार तेवतिया गावं के सरपंच रहे। सरपंच रहते 1987 में तेवतिया लोकदल की टिकट पर पलवल विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। पृथला विधानसभा क्षेत्र के अस्तित्व में आने के बाद 2009 में तेवतिया कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बने। 2014 व 2019 में भी कांग्रेस ने रघुवीर तेवतिया पर भरोसा जताया, लेकिन व चुनाव हार गए।

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