गणतंत्र को अक्षुण्ण रखने का संकल्प

देश को तरक्की और खुशहाली का नया उजाला कैसे दिखाएंगे? हमारी क्या नीतियां होंगी, क्या कार्यक्रम होंगे और हमें किस राह पर चलना है? हालांकि, यही सारे सवाल स्वतंत्रता संग्राम की अगुवाई कर रहे देश के वरिष्ठ नेताओं के जेहन में पहले से थे।

Created By : ashok on :27-01-2023 16:36:59 संजय मग्गू खबर सुनें


संजय मग्गू
आज हमारा देश 74वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। 15 अगस्त 1947 को बिट्रिश हुकूमत की गुलामी से मुक्त होने यानी आजादी पाने के बाद कई सवाल खड़े हुए। जैसे कि हम अपने देश का शासन कैसे चलाएंगे? देश को तरक्की और खुशहाली का नया उजाला कैसे दिखाएंगे? हमारी क्या नीतियां होंगी, क्या कार्यक्रम होंगे और हमें किस राह पर चलना है? हालांकि, यही सारे सवाल स्वतंत्रता संग्राम की अगुवाई कर रहे देश के वरिष्ठ नेताओं के जेहन में पहले से थे।

शायद इसीलिए उन्होंने एक संविधान सभा की जरूरत महसूस की और उसे जुलाई 1946 में ही निर्वाचन के जरिये अंजाम भी दे डाला। इस संविधान सभा की पहली बैठक दिसंबर 1946 में हुई। आजादी मिलने के तत्काल बाद ही देश का बंटवारा हो गया और वह दो हिस्सों में विभाजित हो गया, भारत और पाकिस्तान। ऐसे में संविधान सभा भी दो टुकड़ों में बंट गई, भारत की संविधान सभा और पाकिस्तान की संविधान सभा। भारतीय संविधान सभा में 299 सदस्य थे, जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे। आजाद भारत के लिए संविधान बनाने का कार्य सभा ने 26 नवंबर 1949 को पूरा कर लिया गया था। भारतीय संविधान के निर्माण में 2 वर्ष, 11 माह और 18 दिन का समय लगा था। यही संविधान 26 जनवरी 1950 से देश में प्रभावी हुआ। इस संविधान का मूल आधार भारत सरकार अधिनियम 1935 को माना जाता है। कहते हैं कि भारत का संविधान लागू करने के लिए 26 जनवरी की तिथि इसलिए चुनी गई थी, क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। 26 जनवरी पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, जबकि हम स्वतंत्रता संग्राम में अपनी आहुति देने वाले असंख्य बलिदानियों को याद करते हैं। आज देश में जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का शासन है। इसी को लोकतंत्र कहते हैं। हम सब एक संविधान से बंधे हुए हैं यानी भारतीय संविधान। इस पावन मौके पर हमें यह प्रण करना है कि हमारे पूर्वजों ने एक बहुत बड़ी कीमत अदाकर देश को खुली हवा में सांस लेने का, अपनी बनाई व्यवस्था में जीने का, आगे बढ़ने का जो उपहार आजादी के रूप में दिया है, उसे किसी भी हाल में बचाकर रखना है, भले ही राह में कितने रोड़े क्यों न आ जाएं।

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