सियासी अदावत का अंजाम
अगर सरकारी खजाने को राजस्व का घाटा हुआ है, तो सिसोदिया एवं अन्य के साथ-साथ सीबीआई को उप-राज्यपाल पर भी शिकंजा कसना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रस्ताव पर मंजूरी देने के लिए उप-राज्यपाल खुद दोषी हैं।
Created By : ashok on :01-03-2023 16:06:46 संजय मग्गू खबर सुनें
संजय मग्गू
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार की नई आबकारी नीति में विवाद का मुख्य बिंदु थोक बिक्री पर लाभ का मार्जिन पांच से बढ़ाकर 12 फीसदी करना था। और, यह फैसला उप-राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद किया गया। ऐसे में सीधे तौर पर सहज सवाल यह उठता है कि जब उप- राज्यपाल ने प्रस्ताव पर अपनी मंजूरी दे दी, तो मामले में सिर्फ केजरीवाल सरकार और बतौर आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया ही क्यों दोषी हैं? अगर सरकारी खजाने को राजस्व का घाटा हुआ है,
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तो सिसोदिया एवं अन्य के साथ-साथ सीबीआई को उप-राज्यपाल पर भी शिकंजा कसना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रस्ताव पर मंजूरी देने के लिए उप-राज्यपाल खुद दोषी हैं। उनसे किसी ने बलात हस्ताक्षर नहीं कराए थे। पिछले एक साल से दिल्ली सरकार की उक्त आबकारी नीति को लेकर जो छिछली सियासत चल रही है, उससे आम जन अनभिज्ञ नहीं है। यह पब्लिक है, सब जानती है। हर एक को यह पहचानती है। लाभ के मार्जिन को लेकर जो मुद्दा था, वह आपसी बातचीत से सुलझाया जा सकता था।
जो नुकसान हुआ (अगर वास्तव में हुआ है), तो उसकी भरपाई के रास्ते तलाशे जा सकते थे। लेकिन, जब जेहन में अदावत अपनी मनमानी करने पर आमादा हो, तो सारे रास्ते खुद-बखुद बंद हो जाते हैं। एक और सवाल यहां लाजिमी है कि कोरोना काल के दौरान सुरा प्रेमियों से जो 70 फीसदी कोरोना टैक्स वसूला गया, उसका क्या हिसाब-किताब है? जाहिर है कि उक्त रकम सरकारी खजाने में जमा हुई होगी। लेकिन, अगर उसमें भी कोई बंदरबाट हुई है, तो उसका निश्चित तौर पर खुलासा होना चाहिए, क्योंकि वह बहुत मोटी रकम है, जो शराब खरीदने वालों से लगभग जबरन उगाही गई। दरअसल, दिल्ली सरकार की उक्त आबकारी नीति से सबसे बड़ा ऐतराज उस लॉबी को रहा, जो राजधानी में होटल, बार-रेस्ट्रां संचालित करती है और जिसे सियासी ताकतें खुला संरक्षण देती हैं। कुछ तो खुद इस धंधे में सीधे या फिर पर्दे के पीछे रहते हुए शामिल हैं। नई आबकारी नीति ने उनका धंधा चौपट कर दिया था। इस सारे रण की जड़ यही लॉबी है।