बोलिए, लेकिन स्त्री की गरिमा तो मत गिराइए

अभी शुक्रवार को ही संसद में गोरखपुर (यूपी) से भाजपा के सांसद रवि किशन ने जनसंख्या नियंत्रण पर एक निजी बिल पेश किया है। जनसंख्या नियंत्रण बिल पेश करते हुए रवि किशन का कहना था कि जिस देश की जनसंख्या नियंत्रित होती है, उस देश का विकास तेजी से होता है, लोगों के रहन-सहन में तब्दीली आती है, आर्थिक स्तर ऊंचा होता है।

Created By : ashok on :11-12-2022 15:15:20 संजय मग्गू खबर सुनें

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संजय मग्गू
अभी शुक्रवार को ही संसद में गोरखपुर (यूपी) से भाजपा के सांसद रवि किशन ने जनसंख्या नियंत्रण पर एक निजी बिल पेश किया है। जनसंख्या नियंत्रण बिल पेश करते हुए रवि किशन का कहना था कि जिस देश की जनसंख्या नियंत्रित होती है, उस देश का विकास तेजी से होता है, लोगों के रहन-सहन में तब्दीली आती है, आर्थिक स्तर ऊंचा होता है। कम बच्चे होने से उनकी परवरिश भी अच्छी तरह से होती है। उनके व्यक्तित्व का विकास भी अच्छी तरह से होता है। भाजपा सांसद रवि किशन की बातों और मंतव्यों को ज्यादातर लोग अच्छी तरह से समझते हैं, लेकिन संसद में बिल पेश करने से पहले उन्होंने एक समाचार चैनल को इंटरव्यू देते हुए जो कुछ कहा, वह नारी गरिमा के खिलाफ है। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर वे ट्रोल हो रहे हैं। उनका कहना है कि यदि कांग्रेस यह बिल पहले ले आती तो वे चार बच्चों के पिता नहीं बनते।

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यहां तक बात ठीक है। लेकिन इसके बाद उन्होंने जो कुछ कहा, उससे उनकी पत्नी की गरिमा सार्वजनिक रूप से तार-तार होती है। बस, इसीलिए वे सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रहे हैं। उनका कहना था कि मेरी पत्नी लंबी, छरहरी, पतली थीं। मैंने उनके शरीर को बिगड़ते हुए देखा। एक डिलीवरी, दो डिलवरी, तीन डिलवरी, चार डिलवरी...अब जब उन्हें देखता हूं, तो आई फील सॉरी फार हर। इसके बीच में और भी बातें हैं, वे अपने संघर्ष की बात करते हैं, कुछ न समझ पाने की बात करते हैं, लेकिन वे एक पुरुष होने के नाते उस पीड़ा को महसूस नहीं कर सकते हैं जो उनकी पत्नी ने चार बच्चों को जन्म देते समय झेला होगा। वैज्ञानिकों कहना है कि हमारा शरीर 45 डेल (दर्द मापने का पैमाना) का दर्द बर्दाश्त कर सकता है। महिला अपने बच्चे को जन्म देती है तो उसेउस समय 57 डेल का दर्द सहना पड़ता है, जो एक साथ बीस हड्डियों के टूटने से पैदा हुए दर्द के बराबर होता है।

अब इतनी पीड़ा सहकर मानव संसति को आगे बढ़ाने वाली महिला की गरिमा का सम्मान तो हर हालत में किया ही जाना चाहिए। संतान को जन्म देकर अपनी शारीरिक सुंदरता को बिगाड़ने के लिए सिर्फ वही तो जिम्मेदार नहीं है। इसमें पुरुष भी बराबर का भागीदार होता है। मेरा यह कहने का मतलब सांसद या किसी व्यक्ति की आलोचना या निंदा करना नहीं है। लेकिन इतना जरूर कहना चाहता हूं कि जब प्यार होता है, तो यह महत्वपूर्ण नहीं होता है कि हम जिससे प्यार कर रहे हैं, वह खूबसूरत है या बदसूरत। उसका मन कैसा है? यह सबसे महत्वपूर्ण है। यह भी सही है कि प्यार का आधार शरीर ही होता है। प्लेटोनिक लव जैसी बातें सिर्फ बातें हैं। लेकिन प्यार बना रहे, इसके लिए जरूरी है कि दोनों एक दूसरे की गरिमा का ख्याल रखें। पुरुषों को तो खासतौर पर ध्यान रखना चाहिए क्योंकि स्त्रियों का तन ही नहीं मन भी कोमल होता है। हालांकि विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा जीवन की प्रत्याशा कहीं ज्यादा होती है। वे विपरीत परिस्थितियों में पुरुषों से कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से संघर्ष कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें अवलंबन तो चाहिए ही न।

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