जानलेवा होते आवारा पशु और सरकार मूकदर्शक
पशुओं के पालन पोषण में व्यावसायिक दृष्टिकोण होने के चलते प्राय: पशु पालक इन पशुओं से तब तक ही अपना संबंध रखते हैं, जब तक कि वे अपने मालिक के लिए कमाई का साधन हैं।
Created By : ashok on :03-02-2023 16:08:35 निर्मल रानी खबर सुनेंजानलेवा होते आवारा पशु और सरकार मूकदर्शक
निर्मल रानी
हमारे देश में सड़कों, मुख्य मार्गों, गलियों, चौराहों यहाँ तक कि रेलवे लाइन और रेलवे स्टेशंस तक पर आवारा पशुओं का विचरण करना कोई नई बात नहीं है। परन्तु निश्चित रूप से जिस तरह मानव जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, उसी तरह पशुओं की संख्या भी दिनोदिन बढ़ती ही जा रही है।
पशुओं के पालन पोषण में व्यावसायिक दृष्टिकोण होने के चलते प्राय: पशु पालक इन पशुओं से तब तक ही अपना संबंध रखते हैं, जब तक कि वे अपने मालिक के लिए कमाई का साधन हैं। जैसे ही कोई गाय-भैंस दूध देना बंद करती है या कोई घोड़ा खच्चर बोझ उठाना या रेहड़ा घसीटना बंद करता है या बोझ उठाते उठाते बूढ़ा अथवा घायल हो जाता है, उसी समय उसका स्वामी ऐसे पशुओं को बाहर का रास्ता दिखा देते हैं और वही जानवर अनियंत्रित होकर सड़कों पर फिरने लगते हैं।
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इसके अतिरिक्त यदि किसी पालतू गाय ने बछड़ा पैदा किया है तो अधिकांश गौ पालक उस नवजात बछड़े को भी फौरन बाहर निकाल देते हैं और बछड़े के हिस्से का दूध या स्वयं पीते हैं या उसे बेच देते हैं। शहरों में अनेकानेक गौपालक ऐसे भी हैं जो सुबह सुबह अपनी गाय का दूध निकालकर उसे घर से बाहर निकाल देते हैं। यही गायें सारा दिन आस पास के गली मुहल्लों में दरवाजे दरवाजे भटकती रहती हैं।
और गौभक्त लोग पुण्य अर्जित करने के लिए अपने दरवाजे पर दस्तक दे रही गायों को रोटी आदि देकर उसका पेट भरते हैं। बड़ा आश्चर्य है कि जिस भारतीय समाज में अयोध्या, वृन्दावन, हरिद्वार जैसे धर्मस्थान बुजुर्ग लोगों, विधवाओं, असहाय और अनाश्रित लोगों से भरे पड़े हों, जिस देश में वृद्धाश्रम 'हाउस फुल' रहते हों, लोग अपने बूढ़े मां बाप, दादा-दादी की सेवा कर पाने में असमर्थ हों, ऐसी मानसिकता रखने वाले समाज से सरकार यदि यह उम्मीद करे कि वे बूढ़ी और बिना दूध देने वाली गायों की अंत तक परवरिश करेंगे या उस बछड़े को दूध पिलाएंगे जिससे कभी कुछ फायदा ही नहीं मिलना अथवा किसी बूढ़े घोड़े-खच्चर को बेवजह पालेंगे तो यह कैसे संभव है?
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सरकार ने 'गौवंश' की रक्षा के नाम पर जबरदस्त तरीके से चुनावी कार्ड खेलकर केंद्र से लेकर विभिन्न राज्यों तक की सत्ता तो झटक ली, परन्तु इनकी सुरक्षा और इनसे सुरक्षा के नाम पर कोई कारगर योजना नहीं बनाई गई। यही वजह है कि आज पूरे देश में एक ही दिन में दर्जनों दुर्घटनाएं हो रही हैं।
कहीं सड़कों पर अनियंत्रित गौवंश वाहनों से टकरा रहे हैं। बड़ी दुर्घटना का कारण बन रहे हैं। कहीं कोई पशु अचानक अनियंत्रित होकर दौड़ता हुआ किसी भी वाहन या व्यक्ति से टकराकर लोगों की जान ले रहा है। कोई किसी को अपनी सींग से मार मार कर उसकी जान ले रहा है। बिजली के खंबों पर लगे तमाम बिजली रीडिंग मीटर इन्हीं पशुओं ने अपनी गर्दन व सींग से रगड़कर तोड़ फोड़ कर गिरा दिये हैं, कई जगह करंट लगने से भी ऐसे ही पशुओं की मौत हो चुकी है। सरकार केवल गौ रक्षक होने के अपने दावे पर ही इतरा रही है। प्राय: ऐसे अनियंत्रित छुट्टा पशुओं से दुखी और आतंकित किसान व ग्रामीण अपनी व्यथा भी बयान करते रहते हैं
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कि किस तरह महीनों तक सारी सारी रात जागकर ऐसे आवारा पशुओं के झुण्ड से वे अपनी फसल को बचाते हैं। यदि इसमें वे जरा भी लापरवाह हुए तो सारी फसल जानवर चर जाते हैं। यदि किसान ऐसे पशुओं से अपने खेतों की रक्षा के लिए कंटीले या धारदार तार लगाकर खेतों को सुरक्षित करने की कोशिश करता है तो उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने ऐसे धारदार तारों को भी प्रतिबंधित कर दिया है। गौरतलब है कि प्रदेश में बढ़ते चारे की कमी और पशुओं के दुधारू न होने से पशुपालक ऐसे लाखों पशुओं को छुट्टा छोड़ देते हैं। इन्हीं पशुओं से फसल को बचाने के लिए किसान अपने खेत के चारों ओर कंटीले तार लगा देते हैं।
उत्तर प्रदेश के किसान अब गौवंश से खेत को बचाने के लिए ब्लेड वाले या कंटीले तारों का प्रयोग नहीं कर सकेंगे। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया है। खेत की सुरक्षा के लिए अब किसान केवल रस्सी का ही प्रयोग कर सकेंगे। अगर उन्होंने कंटीले तार लगाए और उससे गौवंश घायल हुए तो उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई होगी। उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए हैं कि इसका उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्रवाई की जाए। सरकार का तर्क यह है कि इससे पशु घायल हो जाते हैं यहाँ तक कि उनकी मौत हो जाती है।
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ऐसे सरकारी आदेश इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए पर्याप्त है कि सरकार की नजरों में किसानों की फसल और आम लोगों की जान से अधिक कीमत उन बेलगाम अनियंत्रित छुट्टा पशुओं की है जो आये दिन फसल बर्बाद करते हैं और दुर्घटनाओं का कारण भी बनते हैं।
कुछ समय पूर्व झारखण्ड से हिंदूवादी संगठनों के हवाले से एक अजीब समाचार पढ़ने को मिला। चंद तथाकथित गौ प्रेमियों ने जिलाधिकारी को एक ज्ञापन सौंप कर कहा था कि सड़कों पर बैठे व विचरण करते गौवंश से अक्सर वाहन टकरा जाते हैं जिससे गौवंश घायल हो जाते हैं। अत: सरकार गौवंश की सुरक्षा भी सुनिश्चित करे तथा गौवंश से टकराने वाले वाहन चालकों के विरुद्ध सख़्त आपराधिक कार्रवाई भी करे। गोया स्पष्ट रूप से ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है
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जिसमें इंसान की कीमत कम और जानवर की ज्यादा है। जहां तक विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा गौपोषण अथवा इनकी देख भाल के लिए गौशालाएं खुलवाने अथवा अन्य प्रोत्साहन नीतियां बनाने या राशि आवंटित करने का सवाल है तो इससे जुड़े भ्रष्टाचार के भी सैकड़ों सचित्र किस्से सामने आ चुके हैं। अभी गायों में फैले लंपी वायरस की बीमारी ने लाखों गायों की जान ले ली है।
(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)