महत्वपूर्ण है स्थानीय भाषा का सवाल
अदालत के फैसले की मूल भावना वादी और उसके वकील तक समुचित तरीके से पहुंचे, उसमें भाषा किसी भी तरह बाधा न बने, तभी न्याय की सार्थकता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस विषय पर अपना नजरिया पेश करके ऐसे हर वादी और वकील की दुखती रग पर हाथ रखा है, जिसे स्थानीय भाषा का तो बहुत अच्छा ज्ञान होता है,
Created By : ashok on :28-01-2023 15:37:46 संजय मग्गू खबर सुनेंमहत्वपूर्ण है स्थानीय भाषा का सवाल
संजय मग्गू
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अदालती फैसलों को स्थानीय भाषा में भी लिखे जाने का जो मुद्दा उठाया है, वह कई मायनों में महत्वपूर्ण है। विद्वान न्यायमूर्ति का यह मानना बिल्कुल सही है कि फैसले की भाषा स्थानीय न होने के कारण ज्यादातर वादी और उसके वकील उसे भलीभांति समझने से वंचित रह जाते हैं। अदालत के फैसले की मूल भावना वादी और उसके वकील तक समुचित तरीके से पहुंचे, उसमें भाषा किसी भी तरह बाधा न बने, तभी न्याय की सार्थकता है।
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जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस विषय पर अपना नजरिया पेश करके ऐसे हर वादी और वकील की दुखती रग पर हाथ रखा है, जिसे स्थानीय भाषा का तो बहुत अच्छा ज्ञान होता है, लेकिन अंग्रेजी नहीं आती या फिर कामचलाऊ ही आती है। और, अभी तक सारे अदालती फैसले सिर्फ अंग्रेजी में लिखे जाते हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय भाषा के इस्तेमाल के बगैर फैसले का मर्म वादी और उसके वकील तक पहुंचना बहुत कठिन है। इसलिए यह तय किया गया है कि अब सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का जरूरत के अनुसार हिंदी, गुजराती, ओड़िया एवं तमिल भाषा में भी अनुवाद किया जाएगा। दिल्ली हाईकोर्ट में आॅनलाइन ई-इंस्पेक्शन सॉफ्ट वेयर का उद्घाटन करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अन्य स्थानीय भाषाओं तक अदालत की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए जस्टिस अभय ओका की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है।
उन्होंने कहा कि आॅनलाइन ई-इंस्पेक्शन सॉफ्ट वेयर वादी और वकील को अदालती दस्तावेजों तक पहुंचने में मदद करेगा। जस्टिस चंद्रचूड़ का मानना था कि प्रत्येक हाईकोर्ट में दो न्यायाधीशों की एक समिति होनी चाहिए, जिसमें एक न्यायाधीश ऐसे हों, जो जिला न्याय पालिका से चुनकर आए हों और जिन्होंने अपने अधिकांश फैसले स्थानीय भाषा में दिए हों। वास्तव में जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले में स्थानीय भाषा के इस्तेमाल की जो पहल की है, वह किसी हद तक वादकारियों और वकीलों के लिए हितकारी साबित हो सकती है। हमारे देश में आज भी अंग्रेजी के मामले में ज्यादातर लोगों के हाथ तंग हैं। वे स्थानीय भाषा को अच्छी तरह बोल, लिख और समझ सकते हैं, लेकिन जहां भी कोई कागजी कार्यवाही अंग्रेजी में होती है, वहां वे असहाय से नजर आते हैं।