सच हुई ओली-प्रचंड के बारे में आशंका
25 दिसंबर को जब संसद में विश्वास मत हासिल करने समय आया था, तो नेपाली कांग्रेस ने भी प्रचंड को बिना मांगे अपना समर्थन दिया था।
Created By : ashok on :02-03-2023 16:05:08 संजय मग्गू खबर सुनेंसच हुई ओली-प्रचंड के बारे में आशंका
संजय मग्गू
पिछले साल 25 दिसंबर को नेपाल में पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल ने पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व वाली कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) को समर्थन देकर प्रचंड को प्रधानमंत्री बनाया था, तब मैंने इसी कालम ‘वरित टिप्पणी’ में 27 दिसंबर को ‘सत्ता के लोभ में एक साथ आए प्रचंड-ओली’ शीर्षक में इस सरकार के गठबंधन पर आशंका जाहिर की थी। दो महीने भी नहीं बीते और केपी शर्मा ओली ने प्रचंड सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। दो महीने पहले व्यक्त की गई आशंका सच साबित हुई।
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दरअसल समर्थन वापसी का फैसला सीपीएन-यूएमएल ने इसलिए लिया है क्योंकि नेपाल में नौ मार्च को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में पुष्प कमल दहल प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार रामचंद्र पौडेल के समर्थन का फैसला किया है। बस यही बात केपी शर्मा ओली को पसंद नहीं आई और उन्होंने सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। वैसे भी ओली और प्रचंड का गठबंधन नेपाल की राजनीति में बेमेल माना जाता रहा है। वर्ष 2018 में प्रचंड और ओली ने अपनी पार्टियों का भले ही विलय कर लिया था, लेकिन दो साल में ही दोनों के संबंध खराब हो गए थे। बाद में दोनों ने अपनी अलग-अलग रहा पकड़ ली। अब सवाल यह उठता है कि नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार को प्रचंड के समर्थन के नेपाल की राजनीति में क्या मायने हैं।
असल मुद्दा यह है कि वर्तमान राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को केपी शर्मा ओली समर्थक माना जाता रहा है। केपी शर्मा ओली को वर्ष 2021 में जब मजबूरन कुर्सी छोड़नी पड़ी, तब भी विद्या देवी भंडारी की वफादारी ओली के प्रति बरकरार रही। जून 2021 में जब शेर बहादुर देऊबा प्रधानमंत्री बने तो राष्ट्रपति भंडारी जानबूझकर मंजूरी के लिए आए कई बिलों को लटकाती रहीं। नतीजा यह हुआ कि नागरिकता बिल जैसे कई बिल अटके रहे। नागरिकता बिल तो अब तक पास नहीं हो सका है। अगर नागरिकता बिल पास हो गया होता, तो नेपाल में आंदोलनरत मधेसियों को काफी फायदा होता और भारत सरकार भी यही चाहती थी। राष्ट्रपति भंडारी ने कई ऐसे काम किए हैं जिसे भारत सरकार ने पसंद नहीं किया है। इस बात को प्रचंड जानते हैं
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कि यदि राष्ट्रपति पद पर कोई ओली समर्थक बैठने में कामयाब हो जाएगा, तो यह उनके लिए अच्छा नहीं होगा। यही वजह है कि उन्होंने नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन देने का फैसला किया। सोमवार को ओली समर्थक मंत्रियों के इस्तीफा देने और समर्थन वापस लेने के बाद भी सरकार गिरने के आसार नहीं नजर आते हैं। 25 दिसंबर को जब संसद में विश्वास मत हासिल करने समय आया था, तो नेपाली कांग्रेस ने भी प्रचंड को बिना मांगे अपना समर्थन दिया था। प्रचंड की कम्युनिष्ट पार्टी आफ नेपाल माओवादी सेंटर के पास 32 सांसद हैं। ओली की पार्टी के पास 78 सीटें और नेपाली कांग्रेस के पास 89 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए 138 सांसदों का समर्थन चाहिए। ऐसे में माना जा रहा है कि नेपाली कांग्रेस और प्रचंड अपने गठबंधन में वापस आ गए हैं और सरकार को कोई खतरा नहीं है।