कुंआरे किसानों ने निकाली ‘ब्रह्मचारियों की पदयात्रा’

दरअसल, कर्नाटक ही नहीं, पूरे देश के विभिन्न राज्यों के हालात पर विचार करें, तो अब किसानों की शादियां होने में मुश्किल हो रही है। इसका कारण लोगों की बदलती मानसिकता है।

Created By : ashok on :04-03-2023 16:07:35 संजय मग्गू खबर सुनें


संजय मग्गू


कर्नाटक के मांड्या जिले के केएम डोड्डी से शुरू हुई पदयात्रा तीन दिन में 120 किमी का सफर तय करके चमाराजगांरा के महादेश्वर मंदिर पर आकर खत्म हुई। इस पदयात्रा को नाम दिया गया था ब्रह्मचारियों की पदयात्रा। इस पदयात्रा के लिए तीन सौ लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया था, लेकिन शामिल साठ लोग ही हुए। इस यात्रा में शामिल ज्यादातर लोग पेशे से किसान थे और 30-35 की उम्र होने के बावजूद इनकी शादी नहीं हुई है। तो क्या पदयात्रा निकालने से इन लोगों की शादी हो जाएगी?

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जी नहीं, इन लोगों का मकसद तो बस इतना था कि ईश्वर को प्रसन्न करना और अपने ही जैसी स्थिति का सामना कर रहे लोगों को सचेत करना। इन युवाओं का मानना है कि चलो, मेरी शादी नहीं हुई तो कोई बात नहीं, लेकिन पदयात्रा के चलते लोगों में जागरूकता आए और उनके जैसे दूसरे किसान युवक कुंआरे न रह जाएं। दरअसल, कर्नाटक ही नहीं, पूरे देश के विभिन्न राज्यों के हालात पर विचार करें, तो अब किसानों की शादियां होने में मुश्किल हो रही है। इसका कारण लोगों की बदलती मानसिकता है। पदयात्रा में शामिल ज्यादातर लोग एक मध्यम आयवर्ग वाले शहरी नागरिक से कहीं ज्यादा अमीर हैं। इनके पास मोटर गाड़ियां हैं, बाइक हैं, मकान भी कच्चे या झोपड़ी वाले नहीं हैं। पक्के घर बने हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद कुंआरे हैं।

धीरे-धीरे इन लोगों की शादी की उम्र भी बीत रही है। इनके घरों की महिलाएं अब गोबर के उपले नहीं पाथती हैं, गांव के गरीब परिवारों की तरह मजदूरी करने नहीं जाती हैं, इसके बावजूद कोई भी अपनी बेटी का विवाह इन किसानों से नहीं करना चाहता है। हालत यह है कि गांवों में रहने वाले किसान भी अपनी बेटियों, बहनों की शादी गांवों में नहीं करना चाहते हैं। उन्हें भी शहर में रहने वाला और सरकारी या गैर सरकारी नौकरी करने वाला दामाद चाहिए। शहर में भले ही एक कमरे का मकान हो, लेकिन गांव में पांच-छह कमरे के मकान का मालिक किसान नहीं चाहिए। इसके पीछे मूल भावना यह है कि किसान की कोई निश्चित आय नहीं होती है। कभी फसल अच्छी लग गई, तो उसकी कमाई हो गई। आंधी, पानी, सूखा या अन्य प्राकृतिक आपदाओं में फसल चौपट हो गई, तो कमाई शून्य। फिर वह अपने बाल बच्चों को खिलाएगा क्या?

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इधर कुछ वर्षों के दौरान लोगों में पैदा हुई यह सोच खेती-किसानी करने वाले युवाओं को एक श्राप की तरह जीवन भर कुंआरा रहने के लिए अभिशप्त कर रही है। इस पदयात्रा में शामिल मालेशा बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में उनकी 25-30 लड़कियों से शादी की बात चली, लेकिन हर बार बात किसानी पर आकर अटक गई। कभी लड़की ने मनाकर दिया एक किसान से शादी करने से, तो कभी लड़की के मां-बाप, भाई-बहन नहीं माने। शहर और गांव में लगातार बढ़ती दूरी की वजह से लोग अब गांवों की वास्तविक हालात से वाकिफ नहीं है। यह समस्या उच्च और निम्न आयवर्ग की नहीं है, लेकिन मध्यम आय वर्ग की जरूर है। देश में दिनोंदिन गड़बड़ता लिंगानुपात भी इस समस्या की जड़ है। जब तक कन्याभ्रूण हत्या जैसे कलंक हमारे समाज में मौजूद रहेंगे, तब तक ऐसी विकराल समस्याएं हमारे सामने मुंह बाए खड़ी रहेंगी।

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