हास-परिहास में बरतें सावधानी
कहते हैं कि कभी-कभी मजाक में कई हुई बात इतनी कड़वी होती है कि वह दिल को छू जाती है। व्यक्ति जीवन भर उस मजाक को भूल नहीं पाता है।
Created By : ashok on :11-11-2022 15:48:42 अशोक मिश्र खबर सुनेंबोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
कहते हैं कि कभी-कभी मजाक में कई हुई बात इतनी कड़वी होती है कि वह दिल को छू जाती है। व्यक्ति जीवन भर उस मजाक को भूल नहीं पाता है। कुछ लोगों का मानना है कि यदि कृष्णा ने दुर्योधन को देखकर यह न कहा होता कि अंधे का पुत्र अंधा ही होता है, तो शायद महाभारत युद्ध न हुआ होता। वैसे भी हमारे देश में यह परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है कि आदमी को सत्य बोलना चाहिए, लेकिन ऐसा सत्य नहीं बोलना चाहिए जो कड़वा हो और उससे देश या राज्य का अहित होने की आशंका हो। यह सही है कि धृतराष्ट्र अंधे थे। यह सर्वविदित था। लेकिन किसी अंधे को अंधा कहकर पुकारना उस व्यक्ति की दिव्यांगता का उपहास उड़ाना होता है।
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हमें राह चलते यदि पैर से दिव्यांग मिल जाता है, तो हम उसे लंगड़ा कहकर नहीं बुलाते हैं। हमारे देश में यह बात भी कही जाती है कि व्यक्ति जीवन भर कितने भी बुरे काम करता रहा हो, लेकिन जब वह मर जाता है, तो उसकी बुराई नहीं करते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि व्यक्ति जब मर गया, तो उसके द्वारा की गई अच्छाई-बुराई उसी के साथ चली गई। हालांकि व्यवहार में ऐसा देखने को नहीं मिलता है। खैर, हमें किसी से हास-परिहास करते समय बहुत सतर्क रहना चाहिए। कृष्णा यानी द्रौपदी की बात दुर्योधन के मन में हमेशा शूल की तरह चुभती रही। वह जब भी द्रौपदी को देखता रहा होगा, उसे अंधे का पुत्र अंधा वाला कथन याद आता रहा होगा। तभी उसके मन में कृष्णा के प्रति इतना द्वेष पैदा हुआ होगा। कहते हैं कि शरीर पर लगे घाव के निशान तो समय आने पर मिट जाते हैं, लेकिन दिल पर लगा घाव हमेशा रिसता रहता है। वह नासूर की तरह हो जाता है जिसका शायद कोई इलाज नहीं होता है।