वी बी- जी राम जी विधेयक ग्रामीण मजदूरों के सौ दिन रोज़गार गारंटी के अधिकार का खात्मा : सुभाष लांबा

कर्मचारी एवं मजदूर संगठनों की घोर निन्दा, राष्ट्रव्यापी विरोध करने का किया ऐलान

Desh Rojana
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कर्मचारी और मजदूर संगठनों ने बृहस्पतिवार को पारित किए रोज़गार और आजीविका की गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 (वी बी-जी राम जी) की

कर्मचारी और मजदूर संगठनों ने बृहस्पतिवार को पारित किए रोज़गार और आजीविका की गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 (वी बी-जी राम जी) की कड़े शब्दों में निंदा और विरोध किया है। अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष लांबा, सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष नरेश कुमार शास्त्री,सीटू हरियाणा के महासचिव जयभगवान,हिंद मजदूर सभा (एचएमएस) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एसडी त्यागी और एटक के वरिष्ठ नेता बेचू गिरी ने इस विधेयक की कड़े शब्दों में घोर निन्दा की है। उन्होंने बताया कि यह विधेयक वास्तव में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) को ही खत्म करने का प्रयास है। सरकार ने समूचे विपक्ष और मजदूर एवं कर्मचारी संगठनों के तीखे विरोध की अनदेखी कर बहुत ही जल्दबाजी में विधेयक को बहुमत के दम पर पारित किया है। इसलिए इस मजदूर विरोधी विधेयक का देशभर में व्याप्त विरोध किया जाएगा।

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अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष लांबा ने इस विधेयक की निंदा करते हुए बताया कि देश के करोड़ों ग्रामीण मजदूरों को सौ दिन का रोजगार उपलब्ध कराने, बेरोज़गारी भत्ता सुनिश्चित करने वाले पहले से मौजूद कानून को आखिर केन्द्र सरकार क्यों बदल रही है ? सरकार मजदूरों को गुमराह करने के लिए यह दावा कर रही है कि अब सौ की बजाय 125 दिन काम दिया जाएगा। लेकिन विधेयक का अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि यह दावा महज़ एक जुमला है। नए कानून के तहत अब पूरे देश के सभी ग्रामीण मजदूरों को काम देने की कोई गारंटी नहीं रहेगी। केवल उन्हीं गांवों के मजदूरों को काम मिलेगा, जिन्हें केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी। इसके साथ ही काम न मिलने की स्थिति में मिलने वाला बेरोज़गारी भत्ता भी समाप्त कर दिया गया है। मनरेगा एक सार्वभौमिक, मांग-आधारित वैधानिक अधिकार स्थापित करता है, जिसके तहत किसी भी ग्रामीण क्षेत्र का कोई भी वयस्क व्यक्ति जो अकुशल शारीरिक श्रम करना चाहता है, काम पाने का हकदार है। इसके विपरीत नए विधेयक के अनुसार काम केवल उन्हीं ग्रामीण क्षेत्रों में दिया जाएगा जिन्हें केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी। यदि कोई क्षेत्र अधिसूचित नहीं होता है, तो वहां के मजदूरों को काम पाने का कोई अधिकार नहीं रहेगा। इससे रोजगार की गारंटी केंद्र सरकार की कृपा पर निर्भर हो जाएगी।

सीटू महासचिव जय भगवान व एचएमएस के उपाध्यक्ष एसडी त्यागी ने बताया कि यह विधेयक एक अधिकार-आधारित, प्रवर्तनीय कानून को समाप्त कर उसे एक बजट-सीमित, विवेकाधीन योजना में बदल देता है, जिसमें केंद्र सरकार की कोई जवाबदेही नहीं है। इससे मजदूर अधिकार धारी नागरिक न रहकर केवल लाभार्थी बनकर रह जाएंगे और काम न मिलने की स्थिति में अपने अधिकारों के लिए अदालत में भी नहीं जा सकेंगे। अभी तक मनरेगा के तहत मजदूरी का 100 प्रतिशत और सामग्री लागत का अधिकांश हिस्सा केंद्र सरकार वहन करती है। लेकिन प्रस्तावित विधेयक में अधिकांश राज्यों के लिए खर्च का अनुपात 60:40 कर दिया गया है। इससे राज्यों पर भारी वित्तीय दबाव पड़ेगा, विशेषकर उन गरीब राज्यों पर जहां ग्रामीण रोजगार की आवश्यकता सबसे अधिक है। इसके चलते राज्य सरकारें काम की मांग दर्ज करने से बचेंगी। मनरेगा के तहत साल के किसी भी समय काम मांगा जा सकता है, लेकिन नए विधेयक में बुवाई और कटाई के मौसम में 60 दिनों तक काम पूरी तरह बंद रखने का प्रावधान है। जबकि वास्तविकता यह है कि कृषि जोतों के घटते आकार, बढ़ती लागत, मशीनीकरण और तथाकथित वैज्ञानिक खेती के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में पहले ही रोजगार के अवसर घटते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि असल में मोदी सरकार जिस “विकसित भारत” की बात कर रही है, वह ग्रामीण मजदूरों से रोजगार की कानूनी गारंटी छीनकर बनाया जाने वाला भारत है। इसलिए सीटू इस विधेयक को पूरी तरह मजदूर-विरोधी मानते हुए इसकी तत्काल वापसी की मांग करती है। साथ ही मांग करती है कि मनरेगा में कम से कम 200 दिन की रोजगार गारंटी तथा 800 रुपये प्रतिदिन मजदूरी तय को जाए।

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