सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों पर दिया एक और आदेश, जानिए पूरी जानकारी |
अदालत ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि सरकारी और निजी अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों, रेलवे स्टेशनों और अन्य सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों को तत्काल हटाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आवारा कुत्तों और मवेशियों से जुड़ी गंभीर समस्या पर एक अहम आदेश जारी किया है, जो देशभर की राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी लेकर आया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि सरकारी और निजी अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों, रेलवे स्टेशनों और अन्य सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों को तत्काल हटाया जाए। इसके साथ ही, इन कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण कराकर उन्हें सुरक्षित रूप से शेल्टर होम (आश्रय गृह) में रखा जाए, ताकि न तो उन्हें कोई नुकसान पहुंचे और न ही वे आम जनता के लिए खतरा बनें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया पूरी तरह मानवीय ढंग से की जानी चाहिए और किसी भी प्रकार की क्रूरता या हिंसा का सहारा नहीं लिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आवारा कुत्तों और मवेशियों से जुड़ी गंभीर समस्या पर एक अहम आदेश जारी किया है, जो देशभर की राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी लेकर आया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि सरकारी और निजी अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों, रेलवे स्टेशनों और अन्य सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों को तत्काल हटाया जाए। इसके साथ ही, इन कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण कराकर उन्हें सुरक्षित रूप से शेल्टर होम (आश्रय गृह) में रखा जाए, ताकि न तो उन्हें कोई नुकसान पहुंचे और न ही वे आम जनता के लिए खतरा बनें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया पूरी तरह मानवीय ढंग से की जानी चाहिए और किसी भी प्रकार की क्रूरता या हिंसा का सहारा नहीं लिया जाना चाहिए।

इसके अलावा, अदालत ने एक और महत्वपूर्ण निर्देश देते हुए कहा कि देशभर के हाईवे और एक्सप्रेसवे से आवारा जानवरों और मवेशियों को भी हटाया जाए, ताकि सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सके। पिछले कुछ वर्षों में हाईवे पर मवेशियों की मौजूदगी के कारण सैकड़ों जानें गई हैं, और यह फैसला उन हादसों को रोकने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि इन आदेशों का सख़्ती से पालन होना चाहिए और राज्य सरकारें इस पर ढिलाई नहीं बरत सकतीं। अदालत ने अधिकारियों को चेतावनी दी है कि अगर इन निर्देशों की अनदेखी की गई तो इसके लिए जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों पर कार्रवाई की जा सकती है।
पिछले तीन महीनों में सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों से संबंधित कई मामलों में हस्तक्षेप किया है। बढ़ती डॉग-बाइट की घटनाओं, बच्चों और बुजुर्गों पर हमलों तथा नागरिकों की शिकायतों को देखते हुए कोर्ट ने बार-बार सरकारों को इस दिशा में सक्रिय कदम उठाने को कहा है। हालांकि, इन आदेशों का कुछ समाजसेवी संगठनों और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने विरोध भी किया है। उनका कहना है कि इस तरह के आदेशों से पशुओं के अधिकारों का हनन हो सकता है और उन्हें जबरन उनके प्राकृतिक वातावरण से अलग किया जा रहा है। विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कुछ बिंदुओं पर संशोधन करते हुए स्पष्ट किया कि कोई भी कार्रवाई पशु संरक्षण अधिनियम और संविधान के अनुच्छेद 51(A)(g) के तहत निर्दिष्ट ‘जीवों के प्रति करुणा’ की भावना के विपरीत नहीं होनी चाहिए।
अब सवाल यह है कि इन आदेशों के बाद राज्य सरकारों को क्या करना होगा। सबसे पहले, प्रत्येक राज्य को अपने-अपने जिलों में स्ट्रे डॉग मैनेजमेंट कमिटी बनानी होगी, जो स्थानीय निकायों, पशु चिकित्सा विभाग, और पशु कल्याण संगठनों के साथ मिलकर नसबंदी, टीकाकरण और शेल्टर व्यवस्था की निगरानी करेगी। इसके लिए पर्याप्त बजट का प्रावधान किया जाएगा, ताकि शेल्टर होम्स में भोजन, दवा और देखभाल की समुचित व्यवस्था हो सके। साथ ही, नगर निगमों को यह सुनिश्चित करना होगा सार्वजनिक स्थलों पर कुत्तों के झुंड न दिखाई दें और किसी भी प्रकार का सार्वजनिक खतरा उत्पन्न न हो।

इस आदेश से एक ओर जहां नागरिकों की सुरक्षा को लेकर राहत महसूस की जा रही है, वहीं पशु अधिकारों को लेकर बहस भी तेज हो गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अदालत का उद्देश्य जानवरों को नुकसान पहुँचाना नहीं बल्कि मानव और पशु सह-अस्तित्व को संतुलित करना है। यदि सरकारें इस आदेश को संवेदनशीलता और दक्षता के साथ लागू करती हैं, तो यह न केवल आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण लाएगा बल्कि लोगों की सुरक्षा और पशु कल्याण—दोनों के बीच एक नया संतुलन स्थापित करेगा। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम न केवल कानून व्यवस्था के स्तर पर बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी के दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है।



